Book Title: Agam Yugka Jaindarshan
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 346
________________ ३२० आगम-युग का जैन-दर्शन आश्रय से सर्वरूपादि वस्तु की क्षणिकता सिद्ध की गई है और प्रदीपशिखा के दृष्टान्त से वस्तु की क्षणिकता का समर्थन किया गया है । (१२) एवंभूत नय ने जब यह कहा कि जाति-उत्पत्ति ही विनाश है तब उसके विरुद्ध कहा गया है कि “जातिरेव हि भावानामनाशे हेतुरिष्यते ''अर्थात् स्थितिवाद का उत्थान क्षणिकवाद के विरुद्ध इस अर में है । अत एव कहा गया है कि-"सर्वेप्यक्षणिका भावाः क्षणिकानां कुतः क्रिया।' यहां आचार्य ने इस नय के द्वारा यह प्रतिपादित कराया है कि पूर्व नय के वक्ता ने ऋषियों के वाक्यों को धारणा ठीक नहीं की ; अत एव जहाँ अनाश की बात थी वहां उसने नाश समझा और अक्षणिक को क्षणिक समझा । इस प्रकार विनाश के विरुद्ध जब स्थितिवाद है और स्थितिवाद विरुद्ध जब क्षणिक वाद है, तब उत्पत्ति और स्थिति न कह कर शून्यवाद का ही आश्रय क्यों न लिया जाए, यह आचार्य नागार्जुन के पक्ष का उत्थान है । इस शून्यवाद के विरुद्ध विज्ञानवादी बौद्धों ने अपना पक्ष रखा और विज्ञानवाद की स्थापना की। विज्ञानवाद का खण्डन फिर शून्यवाद की दलीलों से किया गया । स्याद्वाद के आश्रय से वस्तु को अस्ति और नास्तिरूप सिद्ध करके शून्यवाद के विरुद्ध पुरुषादि वादों की स्थापना करके उसका निरास किया गया। और इस अरके अन्त में कहा गया कि वादों का यह चक्र चलता ही रहता है, क्योंकि पुरुषादि वादों का भी निरास पूर्वीक्त क्रम से होगा ही। । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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