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श्रागमोत्तर जंन-दर्शन २७७
'सर्वमालम्बने भ्रान्तम्' तथा पक्षाप्रयोग के सिद्धान्तों का युक्तिपूर्वक खण्डन किया है । बौद्धों ने जो हेतु-लक्षण किया था, उसके स्थान में अन्तर्व्याप्ति के बौद्ध सिद्धान्त से ही फलित होने वाला 'अन्यथानुपपत्तिरूप' हेतुलक्षण अपनाया, जो आज तक जैनाचार्यों के द्वारा प्रमाणभूत माना जाता है । इस प्रकार सिद्धसेन ने अनेकान्तवाद में और तर्क एवं न्यायवाद अनेक मौलिक देन दी हैं, जिनका यहाँ पर संक्षेप में ही उल्लेख किया गया है ।
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पुरातनैर्या नियता व्यवस्थितिस्तथैव सा किं परिचिन्त्य सेत्स्यति । तथेति वक्तुं मृत रूढ़गौरवावहं न जातः प्रथयन्तु विद्विषः |
पुराने पुरुषों ने जो व्यवस्था निश्चित की है, वह विचार की कसौटी पर क्या वैसी ही सिद्ध होती है ? यदि समीचीन सिद्ध हो, तो हम उसे समीचीनता के नाम पर मान सकते हैं, प्राचीनता के नाम पर नहीं । यदि वह समीचीन सिद्ध नहीं होती, तो केवल मरे हुए पुरुषों के झूठे गौरव के कारण 'हाँ में हाँ' मिलाने के लिए मैं उत्पन्न नहीं हुआ हूँ । मेरी इस सत्य-प्रियता के कारण यदि विरोधी बढ़ते हैं, तो बढ़ें ।
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