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११० आगम-युग का जैन-दर्शन
१५. (अनेक-२) देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से और (अनेक-२) देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से। अतएव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध (अनेक-२) आत्माएँ नहीं हैं और (अनेक २) अवक्तव्य हैं ।
(७) १६. देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से । अतएव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है, आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है।
१७. देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और (दो) देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से । अतएव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है, आत्मा नहीं है, और (दो) अवक्तव्य हैं।
५८. देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से, (दो) देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से। अतएव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है, (दो) आत्माएँ नहीं हैं और अवक्तव्य है ।
१६. ( दो ) देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से, देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभय पर्यायों से अतएव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध ( दो ) आत्माएँ हैं, आत्मा नहीं है, और अवक्तव्य है।
इसके बाद पंच प्रदेशिक स्कन्ध के विषय में वे ही प्रश्न हैं, और भगवान् का अपेक्षाओं के साथ २२ भंगों में उत्तर निम्नलिखित है
(१) १. पञ्चप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा के आदेश से आत्मा है ।
(२)२. पञ्चप्रदेशिक स्कन्ध पर के आदेश से आत्मा नहीं है । ., (३) ३ पञ्चप्रदेशिक स्कन्ध तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है। (४)४-६ चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध के समान ।
७. देश ( अनेक-२ या ३ ) आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से और देश ( अनेक ३ या २ ) आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से अतएव पंचप्रदेशिक स्कन्ध आत्माए (२ या ३) हैं और आत्माए (३ या २) नहीं हैं।
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