________________
वाद-विद्या-खण्ड १८७ वस्तुतः देखा जाय तो घट और पटादि ये सभी पदार्थ एक नहीं, तो फिर जीव और धट भी एक नहीं।
व्यंसक और लूषक इन दोनों के उक्त उदाहरण जो लौकिक कथा से लिए गए है वे वाक्छलान्तर्गत हैं। किन्तु द्रव्यानुयोग के उदाहरण को देखते हुए कहा जा सकता है कि इन दोनों हेतुओं के द्रव्यानुयोग विषयक उदाहरणों को चरक के अनुसार सामान्य छल कहा जा सकता है, चरब में सामान्य छल का उदाहरण इस प्रकार है
___सामान्यच्छलं नाम यथा व्याधिप्रशमनायोषधमित्युक्ते परो ब्रूयात सत् सत्प्रशमनायेति किं भवानाह । सन् हि रोगः सदौषधम्, यदि च सत् सत्प्रशमनाय भवति तत्र सन् ही कासः सन् क्षयः सत्सामान्यात् कासस्ते क्षयप्रशमनाय भविष्यति इति । वही ५६ ।
न्यायसूत्र के अनुसार भी द्रव्यानुयोग के उदाहरणों को सामान्य छलान्तर्गत कहा जा सकता है-न्यायसू० १. २. १३ ।
अथवा न्यायसूत्र में अविशेषसमजाति प्रयोग के अन्तर्गत भी भी कहा जा सकता है, क्योंकि उसका लक्षण इस प्रकार है।
“एकधमोपपत्त रविशेषे सर्वाविशेषप्रसङ्गात् सद्भावोपप तेरविशेषसमः।' न्याय सू० ५.१.२३ "एको धर्मः प्रयत्नानन्तरीयकत्वं शब्द्घटयोरुपपद्यत इविशेषे उभयोरनित्यत्वे सर्वस्याविशेषः प्रसज्यते । कथम्? सदभावोपपत्त: । एको धर्मः सद्भावः सर्वस्योपपद्यते । सद्भवोपपत्तः सर्वाविशेषप्रसंगात् प्रत्यवस्थानमविशेषसमः" न्यायभा।
बौद्ध ग्रन्थ तर्कशास्त्रगत (पृ० १५) अविशेषखण्डन की तुलना भी यहाँ कर्तव्य है । न्यायमुखगत अविशेषदूषणाभास भी इसी कोटि का है।
छलवादी ब्राह्मण सोभिल के प्रश्न में रहे हुए शब्दच्छल को ताड करके भगवान् महावीर ने उस छल वादी के शब्दच्छल का जो उत्तर दिया है उसका उद्धरण यहाँ अप्रासंगिक नहीं होगा। क्योंकि इससे स्पष्ट हो जाता है कि स्वयं भगवान् महावीर वादविद्या में प्रवीण थे और उस समय लोग कैसा शब्दच्छल किया करते थे
"सरिसवा ते भन्ते कि भक्खेया अभक्खेया ?" "सोमिला ! सरिसवा भक्खेया वि प्रभखेया वि।" । “से केणठेणं भन्ते एवं बच्चह-सरिसवा मे भक्खया वि अभक्खेया वि' ?"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org