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पागम-युग का अन-दर्शन
___ "से नूगं ते सोमिला ! बंभन्नएसु नएसु दुविहा सरिसवा पन्नत्ता, तंजहामित्तसरिसवा य धनसरिसवा य । तत्य गं जे ते मित्तसरिसवा........"ते गं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते घनसरिसवा........"असणिज्जा ते समणाणं निग्गंयाणं अभक्खेया।.............."तत्थणं जे ते जातिया........."लद्धा ते गं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया....."
"मासा ते भंते कि भक्खेवा प्रभक्खया"। "सोमिला ! मासा मे भक्खया वि अभक्खेया वि।" "से केणढण......"
“से नूण ते सोमिला ! बंभन्नएसु नएसु दुविहा मासा पन्नता : तंजहादध्वमासा य कालमासा य । तत्थ णजे ते कालमासा ते गं सावणादीया...."ते समणाण निग्गंथाण प्रभक्खेया। तत्थ णजे ते दव्वमासा ते दुविहा पन्नत्ता प्रस्थमासा य धनमासा य । तत्थणजे ते अत्यमासा.........."ते........... निग्गंधाणं अभक्खया । तत्यणजे ते धन्नमासा....."एवं जहा धन्नसरिसवा"" ""
"कुलत्था ते भन्ते कि भक्खेया प्रभवखेया ?" "सोमिला ! कुलत्था भक्खया वि अभक्खेया वि।" "से केणठेण?',
"से नूण सोमिला ! ते बंभन्नएसु दुविहा कुलत्था पन्नता, तंजहा, इत्थिकुलत्था य धनकुलत्था य । तत्थ जे ते इत्थिकुलत्था ..............."निग्गंथाण अभक्खेया । तत्य जे ते पन्नकुलत्था एवं जहा धन्नसरिसवा"....।" भगवती १८. १० ।
इस चर्चा में प्राकृत भाषा के कारण शब्दच्छल की गुंजाईश है यह बात भाषाविदों को कहने की आवश्यकता नही। __ ८ उदाहरण-ज्ञात–वृष्टान्त—जैनशास्त्र में उदाहरण के भेदोपभेद बताये हैं किन्तु उदाहरण का नैयायिकसंमत संकुचित अर्थ न लेकर किसी वस्तु की सिद्धि या असिद्धि में दी जाने वाली उपपत्ति उदाहरण है ऐसा विस्तृत अर्थ लेकर के उदाहरण शब्द का प्रयोग किया गया है । अतएव किसी स्थान में उसका अर्थ दृष्टान्त तो किसी स्थान में आख्यानक, और किसी स्थान में उपमान तो किसी स्थान में युक्ति या उपपत्ति होता है । वस्तुतः जैसे चरकने वादमार्गपद कह करके या न्यायसूत्र ने तत्त्वज्ञान
२० वही सू० २७ । २. न्याय सू० १.१.१।
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