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प्रमाण -खण्ड १५५
सामान्यतोदृष्ट का यह भी उदाहरण मिलता है । यथा, इच्छादि करना । उसका निर्देश न्यायभाष्य और
से आत्मा का अनुमान पिंगल में 1
अनुयोग द्वार, माठर और गौडपाद ने सिद्धान्ततः सामान्यतोदृष्ट का लक्षण एक ही प्रकार का माना है, भले ही उदाहरण भेद हो । माठर और गौडपाद ने उदाहरण दिया है कि “पुष्पिताप्रदर्शनात्, अन्यत्र पुष्पिता श्राम्रा इति ।" यही भाव अनुयोग द्वार का भी है, जब कि शास्त्रकार ने कहा कि “जहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा ।" आदि ।
अनुमान सामान्य का उदाहरण माठर ने दिया है कि "लिङ्ग ेन त्रिदण्डादिदर्शनेन प्रदृष्टोऽपि लिङ्गी साध्यते नूनमसौ परिव्रास्ति, प्रस्येदं त्रिदण्डमिति ।" गौडपाद ने इस उदाहरण के साध्य - साधन का विपर्यास किया है- यथा दृष्ट्वा यतिम् यस्येदं त्रिदण्डमिति । " ।
कालभेद से त्रैविध्य :
अनुमानग्रहण काल की दृष्टि से तीन प्रकार का होता है, उसे भी शास्त्रकार ने बताया है । यथा - १ अतीतकालग्रहण, २ प्रत्युत्पन्नकाल ग्रहण और ३ अनागतकालग्रहण |
१. अतीतकालग्रहण - उत्तॄण वन, निष्पन्नशस्या पृथ्वी, जलपूर्ण कुण्ड-सर-नदी- दीर्घिका - तडाग - आदि देखकर सिद्ध किया जाए कि सुवृष्टि हुई है, तो वह अतीतकालग्रहण है । ३४
२. प्रत्युत्पन्नकालग्रहण - भिक्षाचर्या में प्रचुर भिक्षा मिलती देख कर सिद्ध किया जाए कि सुभिक्ष है, तो वह प्रत्युत्पन्न काल ग्रहण है । " ३. अनागतकालग्रहण - बादल की निर्मलता, कृष्ण, पहाड़ सविद्युत् मेघ, मेघगर्जन, वातोद्भ्रम, रक्त और प्रस्निग्ध सन्ध्या, वारुण
3 उत्तणाणि वणाणि निष्पण्णसस्सं वा मेइरिंग पुष्णाणि श्र कुण्ड-सर-णइदीहिश्रा - तडागाइं पासित्ता तेणं साहिज्जइ जहा सुबुट्ठोश्रासी ।
34 साहु गोअरग्गगयं विच्छडिश्रपरस्तपाणं पासित्ता तेणं साहिज्जइ जहा सुभिक्खे वट्टई ।"
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