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श्रागम युग का जैन-दर्शन
किञ्चित्साधम्र्योपनीत के उदाहरण हैं । जैसा मंदर - मेरु है वैसा सर्षप है, जैसा सर्षप है, वैसा मंदर है; जैसा समुद्र है वैसा गोष्पद है, जैसा गोष्पद है वैसा समुद्र है । जैसा आदित्य है वैसा खद्योत है, जैसा खद्योत है वैसा आदित्य है । जैसा चन्द्र है वैसा कुमुद है, जैसा कुमुद है वैसा चन्द्र है ।४५
प्रायः साधर्म्यापनीत के उदाहरण हैं । जैसा गौ है वैसा गवय है, जैसा गवय है वँसा गौ है । ४६
सर्वसाधर्म्यापनीत -- वस्तुतः सर्वसाधर्म्यापमान हो नहीं सकता फिर भी किसी व्यक्ति की उसी से उपमा की जाती है, यह व्यवहार देखकर उपमान का यह भेद भी शास्त्रकार ने मान्य रखा है । इसके उदाहरण बताए हैं कि - अरिहंत ने अरिहंत जैसा ही किया, चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती जैसा ही किया इत्यादि ।
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वैधम्र्योपनीत भी तीन प्रकार का है१. किञ्चिद्वै २. प्रायोवैधर्म्य ३. सर्ववैधर्म्य
१. किञ्चिद्व धर्म्य का उदाहरण दिया है, कि जैसा शाबलेय है वैसा बाहुलेय नहीं । जैसा बाहुलेय है वैसा शाबलेय नहीं ।"
२. प्रायोवैधर्म्य का उदाहरण है— जैसा वायस है वैसा पायस नहीं है । जैसा पायस है वैसा वायस नहीं है । ४९
३. सर्ववैधर्म्य - सब प्रकार से वैधर्म्य तो किसी का किसी से
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"जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो, जहा समुद्दो तहा गोप्यं. जहा गोप्ययं तहा समुद्दो । जहा श्राइच्चो तहा खज्जोतो, जहा जोतो तहा श्राइच्चो, जहा चन्दो तहा कुमुदो जहा कुमुदो तहा चन्वो ।"
४६ "जहा गो तहा गवप्रो, जहा गवश्रो तहा गो ।"
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'सव्व साहम्मे प्रवम्मे नत्थि, तहावि तेणेव तस्स श्रवम्मं कोरइ, जहा श्ररिहतेणं अरिहंतसरिसं कयं" इत्यादि -
૮ जहा सामलेरो न तहा बाहुलेरो, जहा बाहुलेरो न तहा सामलेरो ।” ० ९ जहा वायसो न तहा पायसो, जहा पायसो न तहा वायसो ।"
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