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आगम-युग का जन-वर्शन
अनुयोग में है ही। किन्तु वह प्रयत्न जैन-दृष्टि को पूर्णतया लक्ष्य में रख कर नहीं हुआ है। अतः बाद के आचार्यों ने इस प्रश्न को फिर से सुलझाने का प्रयत्न किया और वह इसलिए सफल हुआ कि उसमें जैन आगम के मौलिक पंचज्ञानों को आधारभूत मानकर ही जैन-दृष्टि से प्रमाणों का विचार किया गया है । ___ स्थानांगसूत्र में प्रमाणों के द्रव्यादि चार भेद जो किए गए हैं उनका निर्देश पूर्व में हो चुका है। जैनव्याख्यापद्धति का विस्तार से वर्णन करने वाला ग्रन्थ अनुयोगद्वार सूत्र है। उसको देखने से पता चलता है कि प्रमाण के द्रव्यादि चार भेद करने की प्रथा, जैनों की व्याख्यापद्धतिमूलक है। शब्द के व्याकरण-कोषादि प्रसिद्ध सभी संभवित अर्थों का समावेश करके, व्यापक अर्थ में अनुयोगद्वार के रचयिता ने प्रमाण शब्द प्रयुक्त किया है यह निम्न नकशे से सूचित हो जाता है
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एकान्त - मुद्रामधिशय्य - शय्यां,
नय-व्यवस्था किल या प्रमीला । तया निमीलन्नयनस्य पुंसः,
स्यात्कार एवाजनिकी शलाका ॥
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