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प्रमाण-खण्ड
है, वह प्रोफेसर ध्रुव से ठीक उलटा है। अर्थात् पूर्व-कारण का कार्य से अनुमान करना पूर्ववत् है और कार्य का या उत्तरकालीन का कारण से अनुमान करना शेषवदनुमान है। वैशेषिक सूत्र में कार्य हेतु को प्रथम और कारण हेतु को द्वितीय स्थान प्राप्त है (६.२.१) । उससे भी पूर्ववत् और शेषवत् के उक्त अर्थ की पुष्टि होती है ।
शेषवत्-अनुयोगद्वार का पूर्व चित्रित नकशा देखने से स्पष्ट होता है कि शेषवत् अनुमान में पांच प्रकार के हेतुओं को अनुमापक बताया गया है । यथा
___"से किं तं सेसवं ? सेसवं पंचविहं पण्णत्तं तं जहा कज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं प्रासएणं ।"
१. कार्येण कार्य से कारण का अनुमान करना । यथा शब्द से शंख का, ताडन से भेरी का, ढक्कित से वृषभ का, केकायित से मयूर का, हणहणाट (हेषित) से अश्व का, गुलगुलायित से गज का और घणघणायित से रथ का ।२४
२. कारणेन–कारण से कार्य का अनुमान करना । इसके उदाहरण में अनुमान प्रयोग को तो नहीं बताया, किन्तु कहा है कि 'तन्तु पट का कारण है, पट तन्तु का कारण नहीं, वीरणा कट का कारण है, कट वीरणा का कारण नहीं, मृत्पिण्ड घट का कारण है, घट मत्पिण्ड का कारण नहीं । २५ इस प्रकार कह करके शास्त्रकार ने कार्यकारणभाव की व्यवस्था दिखा दी है। उसके आधार पर जो कारण है, उसे हेतु बनाकर कार्य का अनुमान कर लेना चाहिए यह सूचित किया है ।
३. गुणेन-गुण से गुणी का अनुमान करना, यथा--निकष से सुवर्ण का, गन्ध से पुष्प का, रस से लवण का, आस्वाद से मदिरा का, स्पर्श से वस्त्र का ।२६ ____ २४ “संखं सद्देणं, भेरि ताडिएणं, वसभं ढक्किएणं, मोरं किंकाइएणं, हयं हेसिएणं, गयं गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइएणं।"
२५ "तंतवो पडस्स कारणं ण पडो तंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं ण कडो वीरणा-कारणं, मिप्पिडो घडस्स कारणं ण घडो मिप्पिडकारणं।"
२६ "सुवष्णं निकसेणं, पुप्फ गंधेणं, लवणं रसेणं, महरं प्रासायएणं, वत्यं फासेणं ।"
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