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आगम-साहित्य को रूप-रेखा
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अंगबाह्य में १२ उपांग, ४ छेद, ४ मूल और १ आवश्यक इस प्रकार केवल २१ ग्रंथों का समावेश है, वह इस प्रकार से है१२ उपांग-१ औपपातिक २ राजप्रश्नीय ३ जीवाभिगम
४ प्रज्ञापना ५ सूर्यप्रज्ञप्ति ६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ७ चन्द्रप्रज्ञप्ति ८ निरयावली ६ कल्पावतंसिका
१० पुष्पिका ११ पुष्पचूलिका १२ वृष्णिदशा । शास्त्रोद्धार मीमांसा में (पृ० ४१) पूज्य अमोलख ऋषि ने लिखा है, कि चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति ये दोनों ज्ञाताधर्म के उपांग हैं । इस अपवाद को ध्यान में रखकर क्रमशः आचारांग का औपपातिक आदि क्रम से अंगों के साथ उपांगों की योजना कर लेना चाहिए।
४ छेद–१ व्यवहार २ बृहत्कल्प ३ निशीथ ४ दशा-श्रुतस्कंध । ४ मूल-१ दशवैकालिक २ उत्तराध्ययन ३ नन्दी ४ अनुयोग
द्वार । १ आवश्यक-इस प्रकार सब मिलकर २१ अंगबाह्य-ग्रन्थ वर्तमान
२१ अंगबाह्य-ग्रन्थों को जिस रूप में स्थानकवासियों ने माना है, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक उन्हें उसी रूप में मानते हैं । इसके अलावा कुछ अन्य ग्रंथों का भी अस्तित्व स्वीकार किया है, जिन्हें स्थानकवासी प्रमाणभूत नहीं मानते या लुप्त मानते हैं ।
स्थानकवासी के समान उसी संप्रदाय का एक उपसंप्रदाय तेरह पंथ को भी ११ अंग और २१ अंगबाह्य ग्रंथों का ही अस्तित्व और प्रामाण्य स्वीकृत है अन्य ग्रंथों का नहीं ।
इन दोनों सम्प्रदायों में नियुक्ति आदि ग्रंथों का प्रामाण्य अस्वीकृत है।
यद्यपि वर्तमान में कुछ स्थानकवासी साधुओं की, आगम के इतिहास के प्रति दृष्टि जाने से तथा आगमों की नियुक्ति जैसी प्राचीन टीकाओं के अभ्यास से, दृष्टि कुछ उदार हुई है, और वे यह स्वीकार
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