Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे
'देखणं कोर्स उड़ढं उच्चत्तेणं' देशोनं क्रोशम् ऊर्ध्वम् उच्चत्वेन वर्त्तते इति । अयं भावः धनुस्सहस्रद्वयप्रमाण एकः क्रोशो भवति । " किञ्चिदेशोन" शब्देनेह षष्ट्यधिक पञ्चशतधन्यूनता विवक्षिता । एवं चेदं भवनं चत्वारिंशदधिक चतुर्दशशतधनुः प्रमाणमुच्चत्वेन भवतीति । अर्थः नामानुगतोऽर्थः 'अट्ठो तहेब' तथैव अर्थ: अन्वर्थ ऋषभकूटस्य तथैव यथा
arrant कादीनां पर्वतानामुक्तः तथैवौचित्येन वक्तव्यः । तदभिलापसूत्रं तु 'उप्पलाणी' त्यादिना सूचितं तदनुसृत्य सूत्रमेवं वक्तव्यम् तथाहि ' से केणट्टणं भंते ! एवं वच्चइ उसकूडपव्वए २१ गोयमा उसहकूडपव्वए खुड्डासु वावीसु पुक्खरिणीसु जाव विलपतीसु बहूई उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई सयसहस्सपत्ताई उसहकूडप्पभाई उसकूडवण्णाई' इति ।
की है तथा कुछ कम एक कोश की इसकी ऊँचाई है तात्पर्य इसका ऐसा है कि दो हजार धनुष का एक कोश होता हैं यहां जो इसकी ऊँचाई कुछ कम एक कोश की कहो गई है सो उस दो हजार धनुष में से ५६० कम विवक्षित हुए हैं । इस तरह इसकी ऊँचाई १ एक हजार ४४० चारसो चालोस धनुष की होती है ऐसा जानना चाहिये, "अट्ठो तहेव" ऋषभक्ट ऐसा नाम इसका साथक है जीबाभिगम सूत्र में जैसे यमकादिक पर्वतों के नामकी सार्थकता प्रकट की गई है वैसे ही यहां पर भी इसके नाम की सार्थकता प्रकट करलेनी चाहिये यही बात " उप्पलाणि पउमाणि जाव उसमे य एत्थ देवे महिढिए" इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है अर्थात् जब श्रीगौ स्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा कि हे भदन्त ! " से केणद्वेणं एवं वुच्चइ उमहकूडपव्वए ?' इस ऋषभकूट पर्वत को ऋषभ कूट इस नाम से आपने क्यों कहा है ? तच प्रभुश्री ने इसके उत्तर में इस प्रकार कहा है " गोयमा ! उसहकूडपव्वए खुट्टासु खुट्टियासु वावसु पुक्खरिणीसु जाव विलपंती बहूइं उप्पलाई जाव सहरसपत्ताई सय सहस्सपत्ताईं उसहकूडप्पभाई उसहकूड
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તાપ` આમ છે કે બે હજાર ધનુષ ખરાબર એક ગાઉ હાય છે. અહીં જે આની ઊંચાઈ કંઈકકમ એક કેશ જેટલી કહેવામાં આવી છે તે તે બે હજાર ધનુષમાંથી ૫૬૦ કમ વિક્ષિત છે. આ પ્રમાણે આની ઊચાઇ ૧ હજાર ૪૪૦ ધનુષ જેટલી હેાય છે. એવું भागवु लेह मे "अट्ठो तहेव" ऋषलट नाम खानु यथार्थ छे, वालिगमसूत्रमां भ ચમકાદિક પ તાના નામની સાર્થકતા પ્રકટ કરવામાં આવી છે. તેવી જ અહી' આના નામ नी सार्थ पुरी सेवी लेई से से वात "उप्पलाणि पउमाणि जाव उसमेय एत्थ देवे महिइदिए” मा सूत्रपाठ वडे प्रस्ट उरवामां मावी छे से } क्यारे गौतमे अलु શ્રીને આ જાતને प्रश्न हे लहन्त ! " से केणईणं एवं बुच्चइ ऊसहकूड पवए" ? या ऋषलट पर्वत ने ऋषलङ्कट नाम थी तभे प्रेम संबोधितरी रह्या छो ! त्यारे अलुखे सेना उत्तरमां आ प्रमाणे छु ! 'गोयमा ! उसहकूडपव्बए खुड्डासु खुड्डिया बावीसु पुक्खरिणीसु जाव बिलपंतीसु बहूद्द उप्पलाई जाव सहस्मपत्ताई सयस
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર