Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 786
________________ ७७४ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे सारयधवलब्भररयणिगरप्पगासं दिव्वं छत्तरयणं महिवइस्स धरणियलपुण्णइंदो । तएणं से दिव्व छत्तरयणे भरहेणं रण्णा परामुढे समाणे खिप्पामेव दुवालसजोयणाई पवित्थरइ साहिआई तिरिअं ॥ सू० २०॥ छाया--ततः खलु स भरतो राजा बिजयस्कन्धावारस्योपरि युगमुशलमुष्टिप्रमाणमिताभिः धाराभिः ओघमेघ सप्तरात्रं वर्ष वर्षन्तं पश्यति, दृष्ट्वा चर्मरत्नं परामृशति, ततः खलु तत् श्रीवत्ससटशरूपं वेष्टको भणितव्यो यावत् द्वादशयोजनानि तिर्यक प्रविस्तृणाति तत्र साधितानि ततः खलु स भरतो सस्कन्धावारबलं चर्मरत्नं दूरोहति दुरुह्य दिव्यं छत्ररत्नं परामृशति, ततः खलु नवनवतिसहस्रकाञ्चनशलाकापरिमण्डितम् महाहम् अयोध्यम् निर्वणसुप्रशस्तविशिष्टलष्टकाञ्चनसुपुष्टदण्डम् मृदुराजतवृत्तलष्टाऽरविन्दकर्णिका समानरूपं वस्तिप्रवेशच्च पञ्जरविराजितं विविधभक्तिचित्रं मणिमुक्ताप्रवालतप्ततपनीयपञ्चवणिक धोतरत्नरूपरचितरत्नमरीचिसमर्पणाकल्पकरानुरञ्जितं राजलक्ष्मीचिह्नम् अर्जुनसुवर्णपाण्डुरप्रत्यवस्तृत पृष्ठदे शभागं तथैव तपनीय पट्टधम्मायमानपरिगतम् अधिक सश्रीकं शारदरजनिक वमलपतिपूर्णचन्द्रमण्डलसमानरूपम् नरेन्द्र व्यायामप्रमाणप्रकृतिविस्तृतं कुमुदसण्डधवलं राज्ञः संचारिमं सुरातपवातवृष्टिदोपाणां च क्षयकरम् तपोगुणः लब्धम् अहतं बहुगुणदानम् ऋतुविपरोत सुखकृतच्छायम् छत्ररत्नं प्रधानं सुदुर्लभमल्पपुण्यानाम्।।१।। प्रमाणराज्ञां तपोगुणानां फलैकदेशभागं विमानवासेऽपि दुर्लभतरं प्रलम्बितमाल्यदामकलापं शारदधवलाभ्ररनिकरप्रकाशं दिव्यं छत्ररत्नं भरतेन्ज्ञराज्ञा परामृष्टं सत् क्षिप्रमेव द्वादशयोजनानि साधिकानि तिर्यक् प्रविस्तृणाति ॥सू० २०॥ ____टीका. “तएणं से भरहे" इत्यादि । 'तएण से भरहे राया उपि विजयक्खंधावारस्स जुगमुसलमुट्टिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहि ओघमेघ सत्तरत्तं वासं वासमाणं पासई' ततो दिव्यवर्षानन्तरं खलु स भरतो राजा विजयस्कन्धावारस्य स्वसैन्यानिकस्योपरि युगमुशलमुष्टिप्रमाणमिताभिः धाराभिः सप्तरात्रं सप्तरात्रिप्रमाणकालेन वर्ष वर्षन्तम ओघइस अवसर पर महाराजा भरत ने क्या किया इसका कथन-- टीकार्थ-(तएणं से भरहे राया उप्पि विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुद्धिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेधं सत्तरत्तं वासं वासमाणं पासइ) जब भरत महाराजाने अपने विजय स्कन्धावार निवेश के ऊपर युग, मुशल एवं मुष्टि प्रमाण परिमित धाराओं से पुष्कल संवर्तक अधिकार में कथित वरसा के माफिक सात दिन रात तक बरसते हुए मेघो को देखा तो ( पासित्ता એ સમયે ભરત નરેશે શું કર્યું*-એ સંબંધમાં કથન टीकार्थ-(तएणं से भरहे राया उदिप विजयक्खंधाधारस्स जुगमुसलमुहिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहि आघमेधं सत्तरत्तं वासं वासमाणं पासइ) न्यारे भरत२००१ मे पोताना विorय २४ापारના નિવેશ ઉપર, મુશલ તેમજ મુષ્ટિ પ્રમાણ પરિમિત ધારાઓથી પુષ્કલ સંવતંક અધિકારમાં अथित लिट मु५ सात-64स रात सुधी परसता मेधा ने यात (पासित्ता चम्मरयणं જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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