Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे
मंजुमंजुणा' मञ्जुमञ्जुना अतिसरलेन 'घोसेणं' घोषेण शब्देन " अपडिबुज्झमाणे २' अप्रतिबुध्यन् २ अन्यद्वस्तु अजानन् अजानन् तत्रैव शब्दे लीनत्वात् 'जेणेव सए गिहे जेणेव सए भवणवर्डिसयदुवारे तेणेव उवागच्छइ' यत्रैव स्वकं गृहम् पैत्र्यं राजभवनं यत्रैव स्वकं भवनावतंसकद्वारं जगद्वर्ति वासगृहशेखरी भूतराज योग्यवासगृह प्रतिद्वारमित्यर्थः तत्रैव उपागच्छति स भरतः 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'अभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ' आभिषेक्यम् हस्तिरत्नम् प्रमुखपट्ट हस्तिनं स्थापयति'ठवित्ता' स्थापययित्वा 'आभिसेका ओ हत्थिरयणाओ पच्चोरूह' आभिषेक्यात् पट्टहस्तिन: हस्तिरत्नात् प्रत्यवरोहति उत्तरति 'पच्चोरुहित्ता प्रत्यवरूह्य ऊत्तीर्य 'सोलसदेव सहस्से सक्कारेइ सम्मानेइ' षोडशदेवसहस्राणि सत्कारयति अंजलिप्रभृतिभिः सम्मानयति अनुगमन दिना 'सक्कारित्ता संमानित्ता' सत्कार्य सम्मान्य 'बत्तीसं रायसहस्से सकारेइ सम्माणेइ' द्वात्रिशतं राजसहस्त्राणि सत्कारयति सम्मानयति 'सक्कारिता सम्माणि त्ता' सत्कार्य सम्मान्य' सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ' सेनापतिरत्नं बजते हुए तन्त्री तल त्रुटित-वाथ विशेष इनकी तुमुल गडगडाहट के साथ २ (मधुरेणं मणहरेणं मंजु मंजुणा घोसेणं अपडिबुज्झमाणे अप्पडिबुज्झमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव सए भवणवर्डिसयदुवारे ! तेणेव उवागच्छइ) तथा होते हुए मधुर मनोहर, अत्यंत कर्णप्रिय घोष में तल्लीन होने के कारण अन्य किसी दूसरी वस्तु की ओर ध्यान नहीं देते हुए वे भरत नरेश जहां पर पैतृक राजभवन था और उस में भी जहां पर जगद्वर्ती वासगृहों में मुकुट रूप अपना निवासस्थान था उसके द्वार पर आये (उवागच्छित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ) वहां आकर उन्होने अपने आभिषेक्य हस्ति रत्न को स्वड । कर दिया (ठवित्ता अभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्वोरूहइ) आभिषेक्य हस्तिरत्न को खडा करके फिर वे उससे नीचे उतरे ( पच्चो रुहिता सोलसदेव सहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ) नीचे कर उन्होंने सोलह हजार देवों का अनुगमनादि द्वारा सत्कार किया और सम्मान किया (सक्कारिता सम्माणित्ता बत्तीसं रायसहस्से सक्कारेइ, सम्माणेइ) देवों का सत्कार और स मान करके फिर उन्होंने ३२ हजार राजाओं का सत्कार एवं सन्मान किया (सक्कारिता सम्माणित्ता सेण वइरयणं सक्कारेइ संमाणेइ) सत्कार सन्मान करके फिर अपने सेनापतिरत्न त्रुटित वाद्यविशेष - सर्वना तुभूव गडगडाट युक्त शाहू साथै (मधुरेणं मणहरेण मंजु घोसे अपबुज्झमाणे अपडिबुज्झमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव सप भवणवडिसयदुवारे ! तेणेव उवागच्छ) तेन मधुर, मनोहर, अत्यंत अणुप्रिय घोषमां तस्सीन होवाथी जीन કોઈપણ વસ્તુ તરફ જેનું ધ્યાન નથી એવા તે ભરત નરેશ જ્યાં પૈતૃક રાજભવન હતુ અને તેમાં પણ જ્યાં જગદ્વતી વાસ ગૃહમાં મુકુટરૂપ પેાતાનુ નિવાસસ્થાન હતુ, તેના દ્વારસામે यहां (उवागच्छिता अभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ) त्यां खावीने तेमधे पोताना मालिबेश्य हस्तिरान ने उलाराजीने पछी तेथे। नीचे उतर्या. (पच्चोरुहित्ता सोलसदेव सहस्से लक्कारे सम्माणे) नीचे उतरीने तेथे सोहलर देवानी अनुगमनाहि वडे सत्कार प्रयो राने सन्मान यु (सक्कारित्ता सम्माणित्ता बत्तीसं रायसहस्से सक्कारेइ सम्माणे) हवा! સત્કાર અને સન્માન કરીને પછી તેમણે ૩૨ હજાર રાજાઓ ને સત્કાર તેમજ સન્માન
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર