Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे शस्तं निमृजन्ति - शरीराबहि निष्काशयन्ति निसृज्य च तथाविधान पुदगलान् आददते इति एतदेव दर्शयति 'तं जहा रयणाणं' इत्यादि 'तं जहा रयणाणं जाव रिहाणं अहा वायरे पुग्गले परिसाडेंति' तद्यथा रत्नानां कर्केतनादीनां यावद रिष्टानां रत्नविशेषाणां सम्बन्धिनो यथाबादरान् असारान् पुग्दलान् परिशातयन्ति त्यजन्ति अत्र यावा पदात् 'वइराणं वेरुलियाणं लोहि अक्खाणं मसारगल्लाण हंसगम्भाणं पुलयाण सोगंधिआणं जोईरसाण अंजणाणं अंजणपुलयाण जायरूवाण अंगाणं फलिहाणं'इति सङ्ग्रहः वज्राणां हीरकाणां वैाणां लोहिताक्षाणां मसारगल्लानां हंसगर्भाणां पुलकानां सौगन्धिकानां ज्योतिरसानाम् अजनानाम् अञ्जनपुलकानाम् जातरूपाणाम् सुवर्णरूपाणाम् अङ्कानाम् स्फटिकानाम् एतेषां ततद् रत्नविशेषाणां सङ्ग्रहः परिसाडित्ता'परिशात्य असारान् पुग्दलान् परित्यज्य 'अहा. मुहुमे पुग्गले परिआदिअंति' यथा सूक्ष्मान् सारान् पुग्दलान् पर्याददते गृह्णन्ति परिआदिइत्ता'पर्यादाय-सूक्ष्मान् पुग्दलान् गृहीत्वा दुच्चंपि वे उब्वियसमुग्धा एणं जाव समोहणंति' 'चिकीर्षिताभिषेक मण्डपनिर्माणार्थम् द्वितीयमपि वारं वैक्रियसमुद्घातेन यावत् समवनन्ति आत्मप्रदेशान् दूरतो विक्षिपन्ति 'समोहणित्ता' समवहत्य विक्षिप्य 'बहुसमरमणिज्जं भूमिभाग विउव्वंति' बहुसमरमणीयं भूमिभागं विकुर्वन्ति 'से जहानामए आलिंगपुक्ख. ज्जाई जोयणाई दंडं णितिरंति.) उन्हें बाहर निकाल कर संख्यातयोजनों तक उन्हें दण्डके आकार में परिणमाया (तं जहा रयणाणं जावरिद्वाण अहाबायरे पुग्गले परिसाडेति) और इनके द्वारा उन्होंने रत्नों के यावत् रिष्टे के रत्न विशेषों के सम्बन्धी जो असार बादर पुद्ग्ल थे उन्हें छोड़ दिया-यहां यावत्पद से "वइराणं, वेरुलियाणं, लोहि अक्खाणं, मसारगल्लाणं, हंसगभाणं, पुलयाणं, सोगंधियाणं, जोइरसाणं, अंजणाणं, अंजणपुलयाणं, जायरूवाणं, अंकाणं, फलिहाणं" इस पाठका संग्रह हुआ है.(पडिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआदिअंति) उन्हें छोड़कर उन्होंने यथासूक्ष्मसार पुद्गलेां को ग्रहण कर लिया. (परिसाडित्ता दुच्चंपि वे उब्वियसमुग्धा एणं जाव समोहणंति) सारपुद्गलेां को ग्रहण करके उन्होंने चिकोर्षित मंडप के निर्माण के निमित्त द्वितीय बार भी वैकियसमुद्धात किया. (समोह णित्ता बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वति,) द्वितीयवार प्रशोने महार ढया (समोहणित्ता संखिज्जाइं जोयणाई दंड णिसिरंति) ते प्रशाने महार ४दीन तमने यातयातन सुधारमा परिणत या (तं जहा रयणाणं जाव रिट्टाणं अहा बायरे पुग्गले परिसाडंति) भने तमना 3 तेमणे २त्नेयावत् [२५टो-नविशेषाथी सखरे असार माह२ पदासाहता तेमन छ। या गही यावत् ५४थी 'वहराण, वेरुलि याणं, लोहिअक्खाणं, मसारगल्लाणं हंसगब्माणं जोइरसाण अंजणाण, अंजणपुलयाणं, जायरूवाणं, अंकाण, फलिहाणं" से पानी सड थये। छे. (पडिसाडित्ता अहासुहमे पुग्गले परिआअंति) तमन छडीन तमो यथा सूक्ष्मसार हसान यह सीधा (परिआठित्ता दच्यपि वेउव्वियसमुग्धाए पंजाब समोहण ति) सार हगवान ग्रहए। रान तमो जित भयनानिए भाटे मील १५५६ वैठिय समुद्धात . (समोहणि ता बहुसमरमणिज्जं भूमिभाग विउव्वंति) भी मत समुद्धात ४२शन तम मसन
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
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