Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 938
________________ ९२६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे तोऽपि तस्य भरतस्य कियदन्तमित्याह यावदप्रतिबुध्यन् अप्रतिबुध्यन् विनीता राजधानी मध्यं मध्येन मध्यभागेन निर्गच्छति निष्क्राति 'णिग्गच्छित्ता' निर्गत्य निष्काम्य जेणेव विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छइ' स भरतः यत्रैव विनीताया राजधान्याः उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे ईशानकोणे अभिषेकमण्डपः तत्रेव उपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'अभिसेयमंडवदुवारे आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठावेइ' अभिषेकमण्डपबहिरि आभिषेक्यं पट्टहस्तिरत्नं स्थापयति ठावित्ता' स्थापयित्वा 'आभिसेक्काओ हस्थिरयणाओ पच्चोरुहइ' आभिषेक्यात अभिषेकपट्टहस्तिरत्नात् प्रत्यवरोहति अवतरति 'पच्चोरुहिता' प्रत्यवरुहय अवतीर्य 'इत्थीरयणेणं बत्तीसाए उडुकल्लाणिया सहस्सेहिं बत्तोसाए जणवयकल्लाणिया सहस्सेहि बत्तोसाए बत्तोसइबद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धिं संपरिबुडे अभिसेयमंडवं श्रवण में आसक्त है" इस कथिन पाठ तक यहां पर भी ग्रहण करलेना चाहिये इस तरह की स्थिति में होते हुए वे भरत नरेश विनीता राजधानी के ठीक बोच के मार्ग से होकर निकले (णिग्गच्छित्ता जेणेव विणीयाए रायहाणोए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छइ) बाहर निकल कर वे चक्रवर्ती श्री भरत महाराना जिस और बिनोता राजधानी का इशान कोण एवं जहां पर रमणीय अभिषेक मंडप था वहां पर आये (उवागरिछत्ता अभिसेयमंडवदुवारे आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठावेइ ) वहांआकर उन्होंने आभिषेक्य मंडप के द्वार पर अपने आमिषेक्य हस्तिरत्न को खड़ाकरदिया (ठावित्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाश्रो पच्चोरुहइ) खडा करके वे उस आभिषेक्यहस्तिरत्न से नीचे उतरे ( पच्चोरुहिता इत्थीरयणेणं बत्तीसाए कल्लाणियासहस्सेहिं बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्सेहिं बतीसाए बत्तीसइबद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धि संपरिवुडे ) नीचे उतर कर स्त्रीरत्न सुभद्रा आदि बत्तीस हजार ऋतुकल्याणिका राजकन्याओ से ३२ हजार जनपद के मुखियाओं को कल्याणकारिणि कन्यकाओं से છે, તે પાઠ એટલે કે “વાગતા વાઘોના મંજુધ્વનિ થી જેનું ચિત્ત અન્યત્ર સંલગ્ન થયું નથી. તેવા વાદ્યોને સાંભળવામાંજ જે આસકત છે' એ કથિત પાઠ સુધી અત્રે પણ પાઠ સંગૃહીત થયેલ છે. આ પ્રમાણે ઠાઠ-માઠ થી ભરત નરેશ વિનીતા રાજધાની ના ઠીક મધ્યમાં આવેલા भागमा २६२ नाया. (णिगच्छित्ता जेणेव विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरस्थिमे दिसी भाए अभिसेयमडवे तेणेव उवागच्छइ) महा२ नाणीने तसा (वनीता यानी ना शान समय मामिष महता, त्या ५४च्या. (उवागच्छित्ता अभिसेय मंडवदबारे आभिसेवक हत्थिरयणं ठावेइ) त्यां पायीन तभी भाभिषेश्य भनी वारनी सभि मालिषेश्य स्तिनने सु२१ यु. (ठावित्ता आभिसेक्काओ हस्थिरयणाओ पच्चोरुहइ) शीशमान त सन ने मलिषेश्य इस्तित्न ५२ थी नीय जतो. (पच्चोरुहित्ता हत्थीरयणेण बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्सेहिं बत्तीसइबद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धि संपरिडे) नीये उतरीन सी २त्न सुमद्रा, भने ३२ ६१२ *तु त्यागि २१ न्याय। ૩૨ હજાર જનપદના મુખીઓની કલ્યાણકારિણી કન્યાઓ અને ૩૨-૩૨ પાત્રોથી બદ્ધ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992