Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 976
________________ ९६४ ___ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पोरेवच्चं भट्टित्तं सामित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे' आधिएत्यम् अधिपते विः मुख्यत्वम् पौरोवृत्यम् पुरोवर्तित्वम् अग्रेसरता भर्तृत्वं पतित्वम् स्वामित्वम् नायकत्वम् महत्तरत्वम् अतिशयमहत्वम् आज्ञेश्वरत्वम् सेनापत्यं सेनानेतृत्वम् कारयन् पालयन रक्षयन् सुखानि भुतेस भरतः केषु सत्सु स सुखानि मुक्ते इत्याह 'ओहयणिहएम' इत्यादि 'ओहयणिहएसु कंटएम' उपहतनिहतेषु कण्टकेषु तत्र उपहतेषु विनाशितेषु निहतेषु च अपहृतसकलसमृद्धिषु कण्टकेषु तत्स्वरूपेषु गोत्रजशत्रुषु तथा 'उद्धियमलिएस सव्वसत्तुसु' उद्धृतमर्दितेषु सर्वशत्रुषु तत्र उद्धतेषु देशान्निर्वासितेषु मदितेषु च मानहानि प्रापितेषु सर्वशत्रुषु अगोत्रजवैरिषु एतत्सवे कुतोभवतीत्याह 'णिज्जिरसु' निजितेषु भग्नबलेषु सर्वशत्रुषु मोक्तप्रकारद्वयशत्रुषु, अत्र सर्वशत्रुषु इति पदं देहली प्रदीपन्यायेन उभयत्र सम्बन्धः, कीदृशो भरतः सुखानि भुङ्क्ते इत्याह-'भरहाहिवे' इत्यादि 'भरहाहिवे गरिंदे' भरताधिपो नरेन्द्रः 'वरचंदणच्चिअंगे' वरचन्दनवच्चं कारमाणे पालेमाणे) तथा और भो अनेक राजेश्वर तलवर आदि से लेकर सार्थवाह तक के जनों का आधिपत्य करते हुए अप्रेसरपना करते हुए भर्तृत्व-स्वामोपना करते हुए उनका संरक्षणत्व करते हुए उनका नेतृत्व करते हुए, उनका सेनापत्य करते हुए और अपनी आज्ञा का उन सब से पालन करवाते हुए, (माणुस्से सुहे मुंजइ) मनुष्यभव संबन्धो सुखों को भोगते हुए अपना समय शान्ति के साथ व्यतीत करने लगे (ओहय निहएसु कंटएसु) क्योंकि उनके गोत्रज एवं अगात्रज समस्त शत्रु नष्ट हो चुके थे एवं वे शत्रु सम्पत्ति विहीन हो चुके थे (उद्धियमलिएसु सव्वसत्तुसु) देश से निर्वासित हो चुके थे मानहानि युक्त हो चुके ये (णिज्जिएसु) सेना विहीन हो चुके थे (भरहाहिवे णरिंदे) इस कारण सम्पूर्ण ६ खंडवाले भरत क्षेत्र के अधिपति ये बन चुके थे और नरों में-प्रजाजनो में-ये इन्द्र के जैसे चकवर्तित्व की अनुपम असाधारण विभूति से युक्त होने के कारण मान्य हो चुके थे हर समय (वरचंदणचच्चियंगे) इनका शरीर श्रेष्ठ चन्दन से चर्चित बना माहेवच्चं पोरेवच्चं भहितं सामित्तं महत्तरगतं आणाईसर-सेणावच्च कारेमाणे पाले माणे) तमा मीन ५५५ सन २०१२ तदारया मांडीन सायवाह सुधीना सी ५२ આધિપત્ય કરતાં, અગ્રગામિત્વ કરતાં, ભર્તુ વકરતાં, સેનાપત્ય કરતાં અને પિતાના माहेशन सन सन २qdi (माणुस्से सुहे भुजइ) मनुष्य समधी सुमोन लागतापताना समय शान्तिपू' व्यतीत ४२ साज्या. (ओहयनिहएसु कंटएस) भ તેમના ગોત્રજ અને અગાત્રજ સમસ્ત શત્રુઓ નાશ પામ્યા હતા. અને તેઓ સસ્પત્તિ विहीन 25 गया हता. (उद्धियलिएसु सव्वसत्तसु) शिथी १४२ ते निवासित थ यू४या हता, मान हानि युक्त यूइया ता. (णिज्जिएसु) सेना विहान यूया ता. (भरहाहिवे परिंदे) मेथी संपूर्ण सरतक्षेत्रमा समे। मधिपति ચૂક્યા હતા. અને રોમાં–પ્રજાજનામાં-એ ભરત નૃપતિ ઈન્દ્ર જેવા ચકવતી વની અનુપમ-અસાધારણ વિભૂતિથી યુક્ત હોવા બદલ સમ્માન્ય થઈ ચૂક્યા હતા. દર વખતે જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992