Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 933
________________ प्रकाशिका टीका तृ० ३वक्षस्कारः सू० ३० भरतराज्ञः राज्याभिषेकविषयकनिरूपणम् ९२१ रेवा' तद्यथानामक: आलिङ्ग्यपुष्कर इति वा, आलिङ्गितुं योग्य: कमलबीजकोशः कमलमध्यभाग इत्यर्थः ननु रत्नादीनां पुद्गला औदारिकास्ते वैक्रियसमुद्धाते कथं ग्रहणयोग्याः ? इति चेत् उच्यते औदारिका अपि ते पुद्गला गृहीताः सन्तो वैक्रियतया परिणमन्ते, पुग्दलानां तत्तत्सामग्रीवशात् तथा तथापरिणमनात् अतो न कश्चिदोपलेशोऽपीति, पूर्ववैक्रियसमुद्धातस्य जीव प्रयत्नरूपत्वेन क्रम क्रम मन्दमन्दतरभा वापन्नत्वेन क्षीणशक्तिकत्वात् इष्टकार्यसिद्धेः । अथ समभूमिभागे आभियोग्यास्ते देवाः यत्कृतवन्तः तदाह - ' तस्स ण बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झ देसभाए एत्थ णं महं एवं अभिसेयमण्डवं विउव्वंति' तस्य खलु बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य बहुमध्यदेश मागे अत्र खलु महान्तम् एकमभिषेकमण्डपं विकुर्वन्ति निर्मान्ति मण्डपस्य विशेषमाह 'अणेगखंभसयसणिविडं जाव गंधर्वाद्विभूयं पेच्छाघरमंडववण्णगोत्ति' अनेकसमुद्धात करके उन्होंने बहुममरमणीय भूमिभाग की विकर्वणा की - ( से जहानामए आलिंगपुक्खरे इवा) वह बहुसमरमणाय भूमिभाग आलिङ्ग पुष्कर के जैसा प्रतीत होता था - कमलबीज का नाम अलिङ्गपुष्कर है. शंका - रत्नादिकों के पुद्गल औदारिक होते हैं वे वैकियसमुद्धात द्वारा ग्रहण योग्य कैसे हो सकते हैं. ? तो इस आशंका का उत्तर ऐसा हैं कि औदारिक भी वे पुद्गल गृहोत होते हुए वैक्रियरूप से परिणम जाते हैं, क्योंकि तत्तत्सामग्री के वश से पुद्गलों का उस उस स्वभावरूप से परिणमन हो जाता है. इसलिए यहां कोई भी दोष संभवित नहीं होता है. पूर्व वैक्रियसमुद्धात जीवका एक प्रकार का प्रयत्न विशेषरूप था. इसलिए उसमें क्रम क्रम से मन्द मन्दतर रूपता आने के कारण वह क्षीण शक्तिवाला हो जाता है. इसलिये इससे इष्ट कार्य सिद्ध नहीं होता है. ( तस्स णं बहुसमरमणिउनस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगं महं अभिसेयमंडवं विव्वति) उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्यभाग में एक विशाल अभिषेक मंडप की उन्हेनि विकुर्वणा को वैक्रियशक्ति द्वारा एक विशाल अभिषेक मंडप बनाया भरभाशीय लुभिलाशनी विठुवा उरी. (से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा) ते महसभ રમણીય ભૂમિભાગ આલિંગ પુષ્કર જેવા પ્રતીત થતા હતા. કમલ ખીજ નું નામ અલિંગ પુષ્કર છે. શકા--રત્નાદિકાના પુદ્ગલા ઔદ્યારિક હાય છે. તે વૈક્રિય સમુદ્દાત દ્વારા ગ્રાહ્ય કેવીરીતે થઈશકે છે! તે આ આશકાના જવાખ આ પ્રમાણે છેકે તે પુદ્ગલે ઔદારિક છે છતાંએ ગૃહીત થઈ તે વૈક્રિયરૂપમાં પરિણત થઈ જાય છે. કેમકે તત્ તત્ સામગ્રીના વશથી પુદ્ગલાનું તત્ તતુ સ્વભાવ રૂપથી પરિણમન થઇ જાય છે એટલામાટે અહીં કોઈપણ જાતના દોષની સભાવના ઉત્પન્ન થતી નથી. પૂ` વૈક્રિય સમુદ્ધાત જીવનું એક પ્રકારનું પ્રયત્ન વિશેષ રૂપહતુ. એથી તેમાં ક્રમશઃ મન્દમન્દતરરૂપતા આવવાથી તે ક્ષણ શક્તિયુંકત થઈ लय छे. येथी खेनाथी दृष्टिहार्य सिद्ध तु नथी. (तस्स णं बहुसमरमणिज्जरस भूमि. भागस्ल बहुमज्झदेसभा एन्थ णं एवं महं अभिसेयमंडवं विउव्वंति ) ते सहुसमरभाशीय ભૂમિભાગના ઠીક મધ્યભાગમાં એક વિશાળ અભિષેક મંડપની તેમણે વિકુવ ણા કરી. એટલેકે वैद्रिय शक्ति बड़े तेभये येऊ विशाल अभिषेक मंडयनुं निर्माण भ्यु (अगखंभलयसण ११६ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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