Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका १०३वक्षस्कारःसू० ३० भरतराज्ञः राज्याभिषेकविषयकनिरूपणम् ९०९ तं सेयं खलु मे अप्पाणं महया रायाभिसेएणं अभिसेएणं अभिसिंचावित्तएत्तिकटु एवं संपेहेति संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभाए जाव जलंते जेणेव मज्जणघरे जाव पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ उपागच्छिता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयति णिसीइत्ता सोलसदेवसहस्से बत्तीसं रायवरसहस्से सेणावइरयणे जाव पुरोहियरयणे तिण्णि सट्टे सूअसए अट्ठारस सेणुिप्पसेणीओ अण्णेअ बहवे राईसर तलवर जाव सत्यवाहप्पभियओ सदावेइ सद्दावित्ता एवं क्यासी अभिजिएणं देवाणुप्पिया! मए णिअगबल वीरिअ जाव केवलकप्पे भरहे वासे तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया! ममं महया महया गयाभिसेयं वियरह, तए णं से सोलसदेवसहस्सा जावप्पभियओ भरहेणं रण्णा एव वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ करयल मत्थए अंजलि कटु भरहस्स रण्णो एयमई सम्मं विणएणं पडिसुणेति तए णं से भरहे राया जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जाव अट्ठमभत्तिए पडिजारमाणे विहरइ । तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणसि आभिओगिए देवे सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एगं महं अभिसेयमण्डवं विउब्वेह विवित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तए णं ते आभिओगा देवा भरहेण रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा जाव एवं सामित्तिआणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति पडिसुणित्ता विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमति अवक्कमितावेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति समोहणित्ता संखिज्जाइं जोयणाई दंड णिसिरंति, तं जहा रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पुग्गले परिसा डेति परिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआदिअंति, परिआदित्ता दुच्चंपि वेउव्वियसमुग्धाएणं जाव समोहणंति समोहणित्ता बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वंति, से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा० तस्सणं बहसरम
'तएणं तस्स भरइस्सरण्णो अण्णया कयाइ । इत्यादि टीकार्य-तएणं तस्स भरहस्त रण्णो अण्णया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्म इमेयारवे जाव व समुप्पग्जित्था) एक दिन की बात है कि जब श्री भरत राजा अपने राज्य शासन के
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
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