Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 920
________________ .९०८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे णमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ' भोजनमण्डपे सुखासनरवगतः सन् स भरत: अष्टम भक्तं पारयति अहोरात्रं दिनत्रयमुपोष्य ततः परं पारणां करोतीत्यर्थः 'पारित्ता' पारयित्वा पारणां कृत्वा 'उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थरहिं बत्तीसइबद्धेहि णाड एहि उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे महया जाव भुंजमाणे विहरई' उपरि प्रासादवरगतै स्फुटद्भिः मृदङ्गमस्तकः द्वात्रिंशब्दद्धैः नाटकैरुपलाल्यमानः २ उपनृत्यमानः २ उपगीयमानः २ महता यावत् भुजानो विहरति तिष्ठति स भरतः अत्र यावत् आहतनाटय तवादित तन्त्रीतलतालतूर्यधनमृदङ्ग टुप्रवादितरवेण विपुलान् भोगभोगान् इति ग्राह यम् एषां व्याख्यानम् अस्मिन्नेव सूत्रे पूर्वे द्रष्टव्यम् ।।२० २९॥ मूलम्-तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइं रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था, अभिजिए णं मए णिअगबलवीरिअ. पुरिसक्कार परक्कमेण चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, वह एक श्रेष्ट सुखासन पर बैठ गया और उसने अपने द्वारा गृहीत अमभक्त की तपस्या को पारणा किया (पारिता उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमस्थएहिं बत्तीसइबद्धेहिं णाडएहि उवलालिज्जमाणे २ उवणचिजमाणे २ उवगिज्जमाणे २ महया जाव भुजमाणे विहइ) पारणा करके वह भरत अपने श्रेष्ठ प्रासाद के भीतर चला गया और वहां वह जिनमें मृदङ्गो की अविरलम्वनि हो रही है ऐसे ३२ पात्रों से बद्ध नाटको द्वारा बारंवार उपलालित होता हुआ, बार२ नृत्यों का अवलोकन करता हुआ बारंबार गायकों के गानो द्वारा स्तुत होता हुआ यावत् भोगभोगों को भोगने लगा यहां यावत्पद से "अहत नाट्यगीतवादित तन्त्री तलतालत्रु टतधनमृदङ्गः पटुप्रवादितरवेण विपुलान् भोगभोगान्" इस पाठ का संग्रह हुवा है। नाट्य गीत आदि पदों की व्याख्या पीछेकई स्थलो पर लिखी जा चुकी है अत: उसे वहाँ से जानलेनी चाहिये ॥२९॥ उवागच्छद) यांनभ७५ हता, त्यां गया. (उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सीहासण वरगए अट्ठमभतं पारेइ) त्यो २ ते ४ श्रेष्ट सुमासन ७५२ मेसी गया असतो पोतानी पडे हात मटम लत तपस्याना पा२९।। र्या (पारिता उपि पासायवरगए फुटमा जेहिं मुइंगमस्थपहिं बत्तीसइवद्धेहिं णाडएहि उवलालिजमाणे २ उवणच्चिज्जमाणे २ उवगिज्जमाणे २ महया जाच भुंजमाणे विहरह) पा२। २रीन पछी त भरत महारानी પિતાના શ્રેષ્ઠ પ્રાસાદ અંદર ગયા. અને ત્યાં તે જેમાં મૃદંગોને અવિરલ ધ્વનિ થઈ રહ્યો છે. એવા ૩૨ પાત્રોથી બદ્ધ નાટક વડે વારંવાર ઉપલાલિત થતો વારંવાર નૃત્યેનું અવલોકન કરતે વારંવાર ગાયકોના સંગીતથી સંતુત થતા યાવતું ગભેગે ભોગવવા લાગ્યા અહીં यावत् ५४थी "अहतनाट्यगोतवादित तन्त्रीतलतालतूर्यधनमृदङ्गपटुप्रवादितरवेण विपुलानभोगभोगान्" से 18न संघ या छे. नाट्य गीत वगेरे ५होनी व्याच्या पडेलमन स्था ५२ ४२वामा भावी छे. मेथी जिज्ञासु ना त्यांची amol . ॥२९॥ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992