Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 900
________________ ८८८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे कुर्वन् सर्वद्धर्या हस्त्यश्वादि सर्व सम्पदा सर्वद्यत्या मणिमुकुटादि धुत्या सर्वकान्त्या यावत् निर्घोषनादितेन यावत्पदात् भेरी झल्लरी मृदङ्गानेकवाद्यपरिग्रहः तेषां निर्घोषनादितेन महाध्वनिप्रतिरवेण (युक्तः) स महाराजो भरतः 'गामागरणगरखेडकब्बडमडंब जाव जोयणतरियाहि वसहोहिं वसमाणे बसमाणे जेणेव विणीया रायहाणी तेणेव उवागच्छइ' ग्रामाकरनगरखेटकर्बट मडम्ब याबद् योजनान्तरिताभिः योजन व्यवहिताभिः वसतिभिः निवासस्थानः बसन् वसन् निवसन् निवसन् यत्रैव विनीता तन्नाम्नी राजधानीतत्रैव उपागच्छति स भरतः। यावत्पदात् द्रोणमुख पत्तनाश्रम सम्बन्ध सहस्रमण्डितं स्तिमितमेदिनीकाम् उपद्रवरहितेन स्थिरमेदिनीस्थ ननां वसुधामभिजयन्२ अग्र्याणि उत्तमोत्तमानि वराणि रत्नानि प्रतीच्छन् तदिव्यं चक्ररत्नमनुगच्छन् अनुगच्छन् इति ग्राह्यम् ग्रामाकरनगरादीनां तु अस्मिन्नेव वक्षस्कारे अव्यवहित षड्वंशति सूत्रे द्रष्टव्यम् 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'विणीयाए रायहाणीए अदरसामंते दुवालस जोयणायाम णवजो यणवित्थिन्नं जाव खंधावारनिवेस करेइ' विनीता राजधान्याः राजधानीभूतनगर्याः विनीता अदरसामन्ते नातिदूरे नातिसमीपे द्वादशयोजनायामम् अष्टाचत्वारिंशत्क्रोशपरिमितदैर्घ्यम्, नवयोजनविस्तीर्ण पत्रिंशत्कोश विस्तारभूतं यावत्स्कन्धावारनिवेशं करोति। अत्र यावत्पदात वरनगरसहव्याप्त हुआ नहो मानों ऐसा करता २ चल रहा था और हस्त्यश्वादि रूप अपनी सम्पत्ति से मणि मुकुटादिकां को धुति से एवं शारीरिक कान्ति से दिग्मडल को आश्चर्य चकित करता हुआ आ रहा था साथ में अनेक प्रकार के बाजे बजते हुए आ रहे थे इस तरह वे भरत राजा ग्राम आकर नगर खेट, कर्बट आदि स्थानों में चार २ कोश से अन्तर से अपनी सेना का पडाव डालते २ और वहाँ के निवासियों द्वारा प्रदत प्रीति दान को स्वीकार करते २ जहाँ पर विनीता नाम की राजधानी थी वहाँ पर आ पहुँचे ग्राम आकर आदि पदों की व्याख्या इसी प्रकरण में २६ वे सूत्र में अभी २ की गई है सो वहीं से देख लेनी चाहिये (उवागच्छित्ता विणोयाए अदरसामते दुवालसजोयणायाम णवजोयणवित्थिन्नं जाव खंधावारनिवेसं करेइ) विनीता राजधानी के पास आकर इन्होंने अपनी सेना की ४८ कोश लम्बो રહ્યો હતો. તેમજ હસ્તિ અશ્વઆદિ રૂપ પિતાની સમ્પત્તિ થી, મણિ મુકુટાદિની યુતિ થી તેમજ શારિરીક કાંતિ થી દિગમંડલ ને આશ્ચર્ય ચકિત બનાવ તે ચાલી રહી હતું. તેની સાથે અનેક પ્રકારના વાદ્યો વગાડનારા બે વાદ્યો વગાડતા ચાલી રહ્યા હતા. આ પ્રમાણે તે ભરત રાજા ગ્રામ, આકર, નગર, ખેડ, કર્બડ, વગેરે સ્થાનોમાં ચાર-ચાર ગાઉના અંતર થી પિતાની સેનાને પડાવ નાખતાં નાખો અને ત્યાંના નિવાસીઓ દ્વારા પ્રદત્ત પ્રીતિદાનને સ્વીકારતો સ્વીકારતે જ્યાં વિનીતા નામે રાજધાની હતી ત્યાં પહોંચે ગ્રામ, આકર વગેરે પની વ્યાખ્યા આ પ્રકરણમાં જ ૨૬માં સૂત્રમાં હમણાં જ કરવામાં આવી છે તે જિજ્ઞાસુ गना त्यांची ती स. (उवागच्छित्ता विणीयाए अदूरसामंते दुवालसजोयणायाम णवजोयणवित्थिन्न जाव खंधाबारनिवेस करेइ) विनीत यानी पासे पहयान તે રાજા એ પિતાની સેનાને ૪૮ ગાઉ લાંબા અને ૩૬ ગાઉ પહેળે પડાવ નાખે. એ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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