Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 911
________________ प्रकाशिका टीका तृ०३वक्षस्कारःसू० २९ राजधान्यां श्री भरतकार्यदर्शनम् ८९९ कुनिकाः शकुनशास्त्रज्ञाः 'बद्धमाणया" वर्द्धमानका: मंगलघटधारकाः 'लंखमंखमाइया' लमलमादिकाः तत्र वंशादेरुपरि ये वृत्तं नृत्यं दर्शयन्ति ते लङ्काः नटादयः माश्चित्रफलकहस्ताः भिक्षुकाः गौरीपुत्रनाम्ना प्रसिद्धाः मायिकाः मायाविनः प्रोक्ता एते पुरुषाः 'ताहि' ताभिः 'ओरालाहिः' औदाराभिः उदारयुक्ताभिः, 'इटाहि' इष्टाभिः अभिप्रेताभिा, 'कंताहि' कान्ताभि मनोहराभिः, पियाहि' प्रियाभिः प्रीतियुक्ताभिः, 'मणुन्नाहिं' मनोज्ञाभिः, 'मणामाहि' मनोऽमाभिः मनसाऽम्यन्ते प्राप्यन्ते पुनः पुनः स्माणतो यास्ताभिः मनोऽनुकूलाभिरित्यर्थः, 'सिवाहि' शिवाभिः, कल्याणयुक्ताभिः "धण्णाहि' धन्याभिः, प्रशंसायुक्ताभिः 'मंगलाहिं' मंगलाभिः मङ्गलयुकाभिः, 'सस्सिरीयाहिं;' ' श्रीकाभिःलालित्यौदार्यादिगुणशोभिताभिः 'हिययगमणिज्जाहिं' हृदयमगनीयाभिः हृदयङ्गमाभिः, 'हिययपल्हायणिज्जाहि' हृदयप्रहलादनीयाभिः हृदयप्रमोदनीयाभिः, 'वग्गूहि' वाग्भिः इति अध्याहार्यम्, 'अणुवरयं' अनुपरतम् उपरतस्य विरामस्य अभाव अनुपरतम् यथा स्यात्तथा न विरम्येत्यर्थः 'अभिणंदंताय' अभिनंदनं धन्यासि अभिनन्दन्त, 'अभिथुणंताय' अभिष्टुवन्तश्च अभिष्टुतिं कुर्वन्तश्च एवं वक्ष्पमाणप्रकारेण अवादिषुः उक्तवन्तः किमुक्तवन्त इत्याहअनेक मुखमाङ्गलिको ने, चारणादिकां ने-(पूसमाणया) अनेक शकुन शास्त्रज्ञों ने (बद्धमाणया) अनेक बर्द्धमानकों ने मङ्गलधटधारकों ने, (लंखमखमाइया) वंशादि के ऊपर जो तमाशे को दिखाते हैं ऐसे अनेक नटों ने अनेक लोगों ने-चित्रफलकों को हाथ में लेकर भिक्षा मांगने वाले भिक्षुको ने एवं अनेक मायावियों ने-इन्द्रजालको ने-जादूगरों ने (ताहिमोरालाहिं इट्ठाहि) उन उदार, इष्ट (कंताहि) कान्त मनोहर (पियाहिं) प्रीतियुक्त (मणुनाहिं) मनोज्ञ (मनोमाहि) एवं बारबार याद करने योग्य ऐसी (वामूहि) वाणियों द्वारा-वचनों द्वारा-जो कि (सिवाहिं) कल्याण युक्त थी (धण्णाहिं) प्रशंसायुक्त थी, (मंगलाहिं) मंगलयुक्त थी (सस्सिरीयाहिं) लालित्य औदार्य आदि गुणों से शोभित थी (हिययपल्हायणिज्जाहि) एवं हृदय को प्रमुदित करनेवाली थी (अणुवस्य) विनाविराम लिये ही-विना रुके ही (अभिणंदंताय अभिथुणताय जयजयणंदा, जयजय भद्दा) अभिनन्दन करते हुए, अभिष्टुतिहामे, (पूसमाणया) मने शन शास्त्रज्ञामे, (वद्धमाणया) भने पभानी भर घटधारी, (लखमखमाइया) शाह 3५२२ मे मनाये छे । मन नरोरे, અનેક લોકોએ-ચિત્રફળકોને હાથમાં લઈને ભિક્ષા માગનારાભિક્ષુકેએ અને અનેક भायावामा छन्द्रन--01गरे।ये (ताहिं ओरालाहि इट्ठाहिं)६२, राष्ट(कंताहि) id, भनाइ२ (पियाहिं) प्रीतियुत (मणुन्नाहिं) भनी २ (मनोमाहि) तभ०४ पारवा२ या ३२वायोग्य पी (वग्गूहि) वाय। -क्या ५२ (सिवाहिं) ४८या युत ती (धण्णाहिं) प्रशसा युत उती, (मंगलाहिं) मयुत उती (सस्लिरीयाहिं) सालित्य, मोहाय, माह शुशथी सुशामित ती. (हिययपल्हायणिज्जाहि) तम याने प्रभुहित नारी हुती. (अणुवरयं) २ विरामीघi सतत (अभिणंदंताय अभिथुणंताय जय जर जय भद्दा) अभिनन्दन ४२ता, अभिटुति-स्तुति ४२०i या प्रमाणे ह्यु हनन् ! मानद જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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