Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 845
________________ प्रकाशिका टीका ४०३वक्षस्कारः सू०२५ नमोबिनमीनामानौ विधाधरराज्ञःविजयवर्णन ८३३ जाव नामिविनमीणं विज्जाहरराईणं अवाहिय महामहिमा' ततो भोजनमण्डपे पारण वाच्यम् यावच्छवादेव श्रेणिप्रश्रेणिशब्दनम् अष्टाहिकाकरणाज्ञापनमिति ततः नमिविनम्यो विद्याधरराज्ञोरष्टाहिकां महामहिमां कुर्वन्तीति आज्ञां च राजे भरताय प्रत्यर्पयन्तीति बोध्यम् 'तए से दिव्बे चक्करयणे आउघरसालाओ पडिणिक्खमइ जाव उत्तपुरस्थिम दिसिं गंगादेवीभवणाभिमुहे पयाए यावि होत्था' ततः नमिविनमिसाधनानन्तरं खलु तदिव्यं चक्ररत्नम् आयुधगृहशालातः प्रतिनिष्क्रामति निर्गच्छतीत्यादिकं प्राग्वत् यावत्पदादवसे यम् अयं विशेषः उत्तरपौरस्त्यां दिशम् ईशानदिशं वैताढयतो गङ्गादेवी भवनाभिमुखं गच्छतः ईशानकोणगमनस्य ऋजुमार्गत्वात् गङ्गादेवी भवनाभिमुखं प्रयातं चाप्यभवत् 'सच्चेव सव्वा सिंधुक्त्तव्यया जाव नवरं कुंभट्ठसहस्सं रयणचितं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई सेसं तं चेव जाव महिमति' सैव फिर वहां से वे भोजन मंडप में गये. वहां उन्होंने पारणा को यहां यावत् शब्द से इस कथनका संग्रह हुआ जानना चाहिए- कि फिर उन्होने श्रेणी प्रश्रेणो जनों को बुलाय उन्हें आठ दिन तक लगातार महामहोत्सव करने की आज्ञा दी. उन्होंने भरत राजा की आज्ञा से नमिविनमिविधाधर राजाओं के विजयोपलक्ष्य में आठ दिन तक ठाठ वाटसे महोत्सव किया और उस महोत्सव के पूर्णरूप से संपादन हो जाने की खबर राजा को कर दी" (तए णं से दिव्वे चक्कर यणे आउहधरसालाओ पडिणिक्खमई) इसके बाद वह चक्ररत्न आयुधगृहशाला से बाहर निकला (जाव उतरपुरस्थिमं दिसि गंगादेवीभवणाभिमुहे पयाए यावि होत्था) और यावत् वह इशानदिशा में गंगा देवी के भवन को ओर चला. क्योंकि वैताढय से गङ्गादेवी के भवन की ओर जाने वाले को ईशान दिशा में जाने का मार्ग सरल है. (सच्चेव सव्वा सिंधुवतव्वया जाव नवरं कुंभद्रसहरसं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई सेसं तं चेव जाव महिमति) वही पूर्वोक्त समस्त सिन्धु प्रकरण में कहो गइ वक्तव्यता अब यहां पर कह लेनी चाहिये. परन्तु ત્યાં પહોંચીને તેમણે સ્નાન કર્યું અહીં સ્નાનવિધિનું સંપૂર્ણ રૂપમાં વર્ણન કરવું જોઈએ. પછી તે ત્યાંથી ભેજન મંડપમાં ગયા. ત્યાં તેમણે પારણા કર્યા. અહીં યાવત શબદથી એ કથન સંગૃહીત થયેલ છે. કે પછી તેમણે શ્રેણી–પ્રશ્રેણી જનેને બોલાવ્યા અને આઠ દિવસ સુધી સતત મહામહોત્સવ કરવાની તેમને આજ્ઞા આપી. તેમણે ભરત મહારાજાની આજ્ઞાથી નમિ-વિનમિ વિદ્યાધર રાજાઓ ઉપર વિજય મેળવ્યું તે વિજયપલક્ષ્યમાં આઠ દિવસ સુધી ઠાઠ માઠથી મહોત્સવ કર્યો અને તે મહત્સવ પૂર્ણ રૂપે સંપાદિત થયો છે એની सूचना २०ने मापी (तरण से दिवे चक्करयणे आउघरमालाओ पडिणिक्खमई) त्यार माह त य२न मायुध लामाथी महा२ नीयु. (जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसि गंगा देवी भवणाभिमुहे पयाए यावि होत्था) सने यापत् तेशान हशमा जवाना ભવનની તરફ રવાના થયું કે મને વૈતાદ્રયથી ગંગાદેવીના ભવન તરફ જનારાને ઈશાન દિશામાં 2 धारे सर ५ छे. (सच्चेव सव्वा सिंधु वत्तम्वया जाव नवरं कुंभट्ठसहस्से रयणचित णाणामणिकणगरयण भति चित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाईसेर्स तं व જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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