Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 862
________________ ८५० ____ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे धशालां दर्भसंस्तारक संस्तरणादि सर्व विज्ञेयम् निधिरत्नानां साधनाय अष्टमभक्तं प्रगृह्णाति करोति 'तएणं से भरहे राया पोसहसालाए जाव णिहिरयणे मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्टइ त्ति ' ततः खलु स भरतो महाराजा पौषधशालायां यावत् निधिरत्नानि मनसि कुर्वन् मनसि कुर्वन् मनसि ध्यायन् मनसि ध्यायन् तिष्ठति यावत्पदात् पौषधिक इत्यारभ्य एकः अद्वितीय इति पर्यन्तं पदकदम्बकं संग्राह्यम् । इत्थमनुतिष्ठतः तस्य भरतस्य किं जातमित्याह-'तस्स' इत्यादि 'तस्स य अपरिमियरत्तरयणा धुअमक्खयमव्वया सदेवा लोकोपचयंकरा उवगया णवणिहिओ लोगविस्सुअजसा' तस्य भरतस्य च शब्दोऽर्था न्तरारम्भे नवनिधयः उपागताः समीपमागताः इत्यग्रेण सम्बन्धः कीदृशास्ते निधयः अपरिमितरतरत्नाः अपरिमितानि असीमितानि अपाराणीत्यर्थः रक्तानि रक्तवर्णानि उपलक्षणात् कृष्णनीलपीतशुक्लाधनेकवर्णानि येषु ते तथा, पदार्थाः साक्षादेव उत्पद्यन्ते करके भरत महाराजा ने नौ निधियां एवं चौदह रत्नों को साधन के लिये अष्टमभक्त की तपस्या धारण करली(तएणं से भरहे राया पोसहसालाए जाव निहिरयणे मणसि करेमाणे २चिइ) उस अष्टम भक्त(तेले)कीतपस्यामें उस चक्रवर्ती श्रीभरत नरेशने नौ निधियों का और १४रत्नों का अपने मन में ध्यान करना प्रारम्भ कर दिया यहां यावत् शब्द से-"पौषधिकः"इस पद से लेकर 'एकः अद्वितीयः" पद तक का पदसमूह गृहीत हुआ है (तस्स अपरिमियरत्तरयणा धुवमक्खयमव्वया सदेवा लोकोपचयंकरा उवगया णवणिहियो लोगविस्सुयजसा) उस भरत राजा के पास अपरिमित रक्तवर्ण के, कृष्णवर्ण के, नीलवर्ण के पीतवर्ण, के, शुक्लवर्ण के और हरितवर्ण के इत्यादि अनेक वर्ण के रत्नों वाली तथा जिनका यश लोक में व्याप्त हो रहा है ऐसे नौ निधियां अपने अपने अधिष्ठापक देवो सहित उपस्थित हुई यहां अनेक वर्णों वाले रत्न जिनमें रहते है ऐसा जो कहा गया है वह उनके मत की अपेक्षा से कहा गया है जो ऐसा मानते हैं कि नौनिधियों में ये वक्ष्यमाण पदार्थ साक्षात् उत्पन्न होते हैं शाश्वति कल्प पुस्तक इन पोसहसालाए जाव-निहिरयणे मणसि करेमाणे २ चिट्टइ) ते समभरत(al) तपस्यामा त ભરત નરેશે ૯ નિધિઓનું અને ૧૪ રત્નનું પોતાના મનમાં ધ્યાન શરૂકર્યું આજ અહી यावत ५४थी-पौषधिक: "म यथा मांडीने एकः 'अद्वितीयः" यह सुधीना ५४ समूड। गृहीत या छ. (तस्स अपरिमियरत्तरयणाधुवमक्खयमव्वया सदेवा लोकोपचयकरा उवगया णव णिहिओ लोगविस्सुयजसा ) त भरत महा२नी पासे अपरिमित २४ताना, 50વર્ણના, નીલવર્ણના, પીતવર્ણના, શુકૂલ વર્ણના અને હરિત વર્ણના વગેરે અનેક વર્ણન રત્નોવાળી તેમજ જેમને યશ લેકમાં વ્યાપ્ત થઈ રહ્યો છે એવા ૮ નિધિઓ પિત–પિતાના અધિષ્ઠાપક દેવ સહિત ઉપસ્થિત થયા. અહીં અનેક વણવાળા રને જેમાં રહે છે, આમ જે કહેવામાં આવ્યું છે તે તેમના મતની અપેક્ષા એ કહેવામાં આવેલ છે. જે આ પ્રમાણે માને છે કે નવ નિધિઓમાં એ વક્ષ્યમાણ પદાર્થો સાક્ષાત્ ઉત્પન્ન થાય છે. શાસ્થવતિ ક૯૫ પુસ્તક વગેરે પુસ્તકોમાં વિશ્વની સ્થિતિ પ્રકટ કરવામાં આવી છે. કેટલાકના મત મુજબ કપ પુસ્તક પ્રતિપાદ્ય પદાર્થ સાક્ષાત એ નિધિઓમાં ઉત્પન્ન થાય છે તેમજ એઓ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા

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