Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 881
________________ ८६९ प्रकाशिका टीका तृ० ३वक्षस्कारः सू० २८ राज्योपार्जनानन्तरीयभारत कार्यवर्णनम् सन् स षट्खण्डाधिपतिर्भरतो राजा' सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओअवेइ' षष्टया वर्षसहस्त्रः- पष्टिसहस्रसंख्यकवर्षैः केवलकल्पम् - परिपूर्ण भरतवर्षं साधयति शत्रून् विजित्य स्वाधीनं करोतीत्यर्थः 'ओभवेत्ता' साधयित्वा 'कोडुंबिय पुरिसे सहावे ' कौटुम्बिक पुरुषान् शब्दयति आह्वयति 'सद्दावित्ता एवं वयासी' शब्दयित्वा आहूय एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् उक्तवान् 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया !' क्षिप्रमेव शीघ्र - मे भो देवाणुप्रिया ! 'आभिसेक्कं हत्थिरयणं हयगयरह तहेव अंजणगिरिकूडसणिभं गवई व दुरूढे ' आभिषेक्यम् पट्टहस्तिरत्नम् हस्तिश्रेष्ठम् इदं च पदं हस्ति वर्णकस्मारकम्, तथा हयगजरथेति पदं सेनासन्नाहस्मारकम् तथैव पूर्ववदेव तेनैव प्रकारेण स्नानविधि भूषणविधि सैन्योपस्थितहस्तिरत्नोपागमनानि वक्तव्यानि अञ्जनगिरिकूटसन्निभम् – अञ्जनपर्वतशृङ्गसदृशम् सादृश्यं च कृष्णवर्णत्वेन उच्चत्वेन च बोध्यम् एवंविधं गजरत्नं हस्तिश्रेष्ठं नरपतिः भरतो राजा दुरूढः आरूढवान् 'तरणं तस्स भरहसरण आभिक्कं हत्थिरयणं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठ मगलगा पुरओ अहाणुकप्पं भरहं वासं ओअवेइ) ६० हजार वर्ष तक विजय यात्रा कर सम्पूर्ण इस भारत क्षेत्र को अपने वश में किया (ओअवेत्ता कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ ) इस प्रकार से सम्पूर्ण भारत को साध कर - अपने वश कर भरत राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया (सदावित्ता एवं वयासी) और बुलाकर उनसे ऐसा कहा - ( खिप्पामेव भो देवापिया ! आभिसेक हस्थिरयण हयगयरह तव अंजणगिरिकूडसण्णिमं गयवई णरवई दुरूढे ) हे देवानुप्रियो ! तुम लोग शीघ्र ही अभिषेक्य हस्तिरत्न को और हयगजरथ एवं प्रवर सैन्य को इत्यादि रूप से पूर्व की तरह यहाँ पर स्नानविधि, भूषणविधि सैन्योपस्थिति, एवं हस्तिप्नोपस्थिति कही चाहिये | भरत महाराजा अंजनगिरि के शिखर जैसे गजरत्न पर आरूढ हो गये । यहां हस्तिरत्न को जो अंजनिगिरि के कूट जैसे कहा गया है, उसका कारण हस्तिरत्न को कृष्णता और ऊँचाई है । (एणं तस्स भरहस्स रण्णो अभिसेक्कं हस्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठमंगलगापुर अहाणुपुवी संपट्टिया) जब हस्तिरत्न पर आरूढ हुए भरत राजा चलने को तैयार ये भरतक्षेत्र ने पोताना शमां यु. ( ओअवेत्ता कोडबियपुरिसे सदावेइ) मा प्रभा સંપૂર્ણ ભારતને સાધીને-પેાતાના વશમા કરીને ભરત રાજાએ પેાતાના કૌટુંબિક પુરુષોને लाव्या. (सद्दावित्ता एवं वयासी) भने मोसादीने ते टुभिः पुरुषाने ते रामये या प्रमाणे. (खिपामेव भो देवाणुपिया आभिसेक्यूँ हस्थिरयणं हयगयरह तहेव अंजगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरूढे) डे हेवानुप्रियो तभे यथाशीघ्र आभिषेक्ष्य हस्ति રત્ન ને અને હય ગજ રથ તેમજ પ્રબલ સૈન્યને સુસજ્જ કરી. ઇત્યાદિરૂપમાં અહીં પહેલાંની જેમજ સ્નાનવિધિ, મૈન્ચાપસ્થિતિ તેમજ હસ્તિરત્નાપસ્થિતિ જાણી લેવી જોઇએ. ભરત મહા રાજા અજન ગિરિના શિખર જેવા ગજરત્ન ઉપર આરૂઢ થઇ ગયા. અહી` હસ્તિરત્નને જે સ્મૃજન ગિરિના ફ્રૂટ જેવું કહેવામાં આવ્યુ છે, તેનું કારણ હસ્તિરત્નની કૃષ્ણતા અને ઉંચાઇને सने उस छे. (तरणं तस्स भरहस्स रण्णो अभिसेक्कं हत्थिरयण दूरूढस्स समाणस्स इमे જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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