Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 820
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे औराहसिन्धु निष्कुटसाधनानन्तरं खलु तद्दिव्यं चक्ररत्नम् अन्यदा कदाचित् अन्यस्मिन् कस्मिंश्चित् समये आयुवगृहशालातः प्रतिनिष्क्रामति निर्गच्छति निस्सरति इत्यर्थः 'पडिणिक्खमित्ता' निःसृत्य प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्निर्गत्य ' अतलिक्खपडिवण्णो जाव उत्तरपुरथिमं दिसिं चुल्लहिमवतपव्ययाभिमुहे पयाते यावि होत्था' अन्तरिक्षप्रतिपन्नम् गगनदेशस्थितं यावत्पदात् यक्षसहस्त्रपरिवृतं दिव्यत्रुटितवाद्य विशेषशब्दसन्निनादेन अम्बरतल पूरयदिव एतेषां पदानां सङ्ग्रहः उत्तरपौरस्त्यायां दिशि ईशाने कोणे क्षुद्रहिमवत्पर्वताभिमुखं क्षुद्र हिमाचलगिरिसंमुखं प्रयातं गतं चाप्यभवत् 'तरणं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करणं जाव चुल्लहिमवंतवास हरपव्वयस्स अदूरसामंते दुबालसजोयणायामं जाव चुल्लहिमवंत गिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्ह' ततः खलु स भरतो राजा तद् दिव्यं चक्ररत्नं यावत् अभिक्षुद्र हिमवदगरि प्रयातं दृष्ट्वा कौटुम्बिक पुरुषाज्ञापनं हस्तिरत्नप्रतिकल्पनं सेनासन्नाहनं स्नानविधानं हस्तिरत्नारोहणं मार्गागतपुरनगर देशाधि वशीकरणं चक्ररत्न (अण्णा कया इं) किसी एक समय (आउघरसाला आ) आयुवगृहशाला से ( पडिणिक्खमइ) निकला और ( पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिबन्ने जाव उत्तरपुरच्छिमं दिसिं चुल्लहिमवंत पन्वयाभिमु पयाए यावि होत्था ) निकलकर वह आकाश प्रदेश से ही ऊपर रहकर ही यावत् उत्तर पूर्वदिशा में ईशान विदिशा में क्षुदहिमवत् पर्वत को तरफ चला यहां यावत्पद से - " जक्खसहस्स संपरिवुडे दिव्व तुडियमदसण्णिणाएणं पूरंते चेव अंबातलं " इन पदों का संग्रह किया गया है. (त से भरहे राया तं दिव्वं चवकरयणं जाव चुल्लहिमवंतवास हरपव्वयस्स अदूर सामंते दुवालसजोयणायामं जाव चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पण्डिइ) क्षुद्र हिमवंत पर्वत की ओर जाते हुए उस दिव्य चरत्न को देखकर भरत राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाना, उन्हें आज्ञा देना, हस्तिरत्न की तैयारी करवाना, सेना की तैयारी करवाना फिर स्नान करना, हस्तिरत्न पर आरोहण करना, मार्गगत पुर के नगर के एवं देश के अधिप ८०८ 'तपणं से दिव्वे चक्करयणे अण्णया कयाइ ' इत्यादि सूत्र - ||२३|| टीअर्थ - प्रमाणे उत्तर द्विश्वत निष्ठुटो उपर विनय भेजव्या पाह (से दिव्वे चक्कर येणे) ते हिव्यय रत्न ( अण्णया कयाई) । ४ वषते (आउहघरसालाओ) आयुध गृह शाणामांथी (पडिणिक्खमइ) महार नीज्यु अने (पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्ख पडिवन्ने जाव उत्तरपुरच्छिम दिसि चुल्लहिमवंतपव्ययभिमुहे पयाए यावि होत्था ) महार નીકળીને તે આકાશ પ્રદેશથો જ એટલે કે અદ્ધર રહીને જ યાવત્ ઉત્તર-પૂર્વ દિશામાં-ઈશાન विदिशामां-क्षुद्र हिभवत् पर्वतनी तर यायुं मही यावत् पहुथी - "जक्वसहस्त संपरिबुडे दिव्वतुडिय सहसण्णिणा एणं पूर्रेते चेव अंबरतलं " थे यहोने संग्रह थयो छे. (तपणं से भर गया तं दिव्वं चक्करयणं जाव चुल्लहिमवंतवासहरपवयस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं जात्र चुल्लहिमवंत गिरिकुमारस्य देवस्स अट्टमभन्तं पगिण्हर) ક્ષુદ્ર હિમવંત પર્યંત તરફ પ્રયાણ કરતાં તે દિવ્યચક્રરત્નને જોઇને ભરત રાજાએ કૌટુબિક પુરૂષાને મેલાવ્યા અને તેમને આજ્ઞા આપી-તમે હસ્તિરત્નને તૈયાર કરેા સેના તૈયાર કરો, જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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