Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 831
________________ प्रकाशिका टीका तृ०३वक्षस्कारः सू० २४ ऋषभक्टविजयवर्णनम् ८१९ त्वा रथं परावर्तयति 'परावति ता' परावर्त्य 'जेणेव विजयखधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ' यत्रैव विजयस्कन्धावारनिवेशो यत्रैव बाह्या उपस्थानशाला तत्रैव उपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'जाव' अत्र यावत्पदात् तुरगान् निगृह्णाति रथं स्थापयति ततः स्थनात् प्रत्यवरोहति मज्जनगृह प्रविशति प्रविश्य स्नाति मज्जनगृहात्प्रतिनिष्क्रामति भुङ्क्ते बाह्योपस्थानशालायां सिंहासने उपविशति श्रेणी प्रश्रेणीशद्वयति क्षुद्रहिमवगिरिकुमारस्य देवस्यअष्टाहिकाकरणम् अष्टदिनपर्यन्तंमहामहोत्सव सन्दिशति ताश्व कुर्वन्ति आज्ञप्तिकां च प्रत्यर्पयन्तीति ग्राह्यम् 'चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहधरसालाओ पडिणिक्खमइ' ततश्च तदिव्य चक्ररत्नम् क्षुद्रहिमवद्गिरिकुमारस्य देवस्य अष्टाहिकायां तदेव विजयोपलक्षिताष्टदिनपर्यन्तायां महामहिमायां महोत्सवविशेपायां निवृत्तायां सत्याम् आयुधगृहशालतः प्रतिनिष्क्रामति निर्गच्छति 'पडिणिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य : 'जाव दाहिणि उसने वहाँ से अपने रथ को लौटाया (परावत्तिता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवदाणसाला तेणेव उवागच्छइ) रथ को लौटाकर फिर वह जहां पर विजयस्कन्धावार का पडाव पड़ा हुआ था, और उसमें भी जहां पर बाह्य उपस्थानशाला थी वहां पर आया। (उवागच्छित्ता जाव चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ) बहां आकर के उसने यावत् क्षुद्रहिमवगिरिकुमार नाम के देव के विजयोपलक्ष्य में आठ दिन तक महामहोत्सव किया जब आठ दिन का महामहोत्सव समाप्त हो चुका- तब वह चक्ररत्न आयुधशाला से बाहर निकला- यहाँ जो "यावत्" शब्द का प्रयोग हुआ है उससे "तुरगान् निगृह्णाति,- रथं स्थापयति, ततः प्रत्यवरोहति, मज्जनगृहं प्रविशति, स्नाति, मज्जनगृहात्प्रतिनिष्कामति, भुङ्क्ते वाह्योपस्थानशालाया-सिंहासने उपविशति, श्रेणीप्रश्रेणी शब्दयति, क्षुद्रहिमवद्गिरिकुमारस्य देवस्य अष्टान्हिका करणं अष्टदिनपर्यन्तं सन्दिशति, ताश्च कुर्वन्ति, आज्ञप्तिकां च प्रत्यर्पयन्ति" इस पाठ का ग्रहण हुआ है । इन पदो की बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ ) २थने पाछ। वाणीन पछी तयां विनय સ્કંધાવારને પડાવ હતું અને તેમાં પણ જર્યા બાહ્ય ઉપસ્થાન શાળા હતી ત્યાં આવ્યા. ( उवागच्छित्ता जाव चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अठ्ठाहियाए महामहिमाए णिवताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ) त्या मावीन तो यावत् क्षुद्र भित ગિરિ કુમાર નામક દેવના વિજયેપલક્ષ્યમાં આઠ દિવસ સુધી મહામહોત્સવ ઉજવ્યા. જ્યારે આઠ દિવસને મહામહોત્સવ સમાપ્ત થઈ ગયો ત્યારે તે ચકરન આયુધ શાળામાંથી બહાર नीज्युं महीने 'यावत्' शण्होने प्रयाग ४२वामा मावस छ, तनाथी 'तुरगान् निगृह्णाति रथं स्थापयति, ततः प्रत्यवरोहति, मजनगृहं प्रविशति, स्नाति, मजनगृहात्प्रतिनिष्कामति, भुङ्क्ते, बाह्योपस्थानशालायां सिंहासने उपविशति, श्रेणीप्रश्रेणि शब्दयति, क्षुद्रहिमवद् गिरिकुमारस्य देवस्य अष्टाहिकाकरणं अष्टदिनपर्यन्तं सन्दिशति, ताश्च कुर्वन्ति, आशप्तिकांच प्रत्यर्पयन्ति” थे 48 सहीत थयेछ. ये पहनी व्याच्या ५i यथास्थाने જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા

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