Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे ईस अणेगखभसयसण्णिविढे जाव मुहसंकमे करेइ' क्षिप्रमेव उन्मग्ननिमग्नजलयो महानधोः अनेकस्तम्भशतसन्निविष्टौ यावत् अचलो अकम्पों अभेद्य कवचौ सालम्बनबाहो पर्वरत्नमयौ सुखसंक्रमो सेतू-सेतुद्वयं करोति 'करित्ता' कृत्वा जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ' यत्रा भरतो राजा तत्रैव तत् वर्द्धकिरत्नम् स वकिः उपाग
छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'जाव एयमाणत्तियं पच्चप्पिण' यावत् पूर्वोक्ताम् पताम् राज्ञोक्तप्रकारिकाम् आज्ञप्तिका (आज्ञा) प्रत्यर्पयति समर्पयति, ननु उन्मग्नजला जलस्थोन्मज्जकत्वस्वभावसिद्धत्वात् कथं तत्र संक्रमाकशिलास्तम्भादिन्यासः मुस्थिरो भवति ? सच दोघंपदृशालाकारो न च जलोपरि काष्ठादिमयः सम्भवति तस्या सारस्वेन भारासहवात् इति चेन्नवर्द्धकिरत्नकृतत्वेन दिव्यशक्ते रचिन्त्यशक्तिकत्वात्, लोक उत्तरति, गुहा च तावन्तं कालमपावृतैवास्ते मण्डलान्यपि तथैव तिष्ठन्ति चक्रवविद्र जाव मुहसंकमे करेइ) भरत राजा की माज्ञा को स्वीकार करके उसने शीघ्र ही उन्मग्ना और निमग्ना नदी के ऊपर पूर्वोक्त अनेक सैकड़ों खम्भो मादि विशेषणों से युक्त दो पुल बना दिये ( करित्तो जेणेव भरहे राया तेणेव उवगच्छइ ) दो पुलों को बनाकर फिर वह जहां पर भरत राजा बिराजमान थे वहां पर माया ( उवागच्छित्ता) वहां भाकर के ( जाव एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ) उसने पुलों के पूर्णरूप से निर्माण हो जाने की भरत गजा को खबर दे दी-यहां पर ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए कि उन्मग्ना नदी का तो स्वभाव ऐसा है कि जो भी पदार्थ उसमें गिर जाता है वह उसके ऊपर ही रहता है डूबता नहीं है तो फिर सेतु बनाने के लिये डाळे गये पदार्थ उसमें कैसे नीचे पहुँच गये और कैसे वहां के स्थिर होकर जम गये। ये पुल वर्द्धकिरत्न ने बनाये होते हैं इसलिये उसकी शक्ति अचिन्त्य होने के कारण वे वहां पर सुस्थिर रहते हैं और इनके ऊपर से लोक उतरते रहते है. तथा चक्रवर्ती के जीवन तक गुफा खुली हुई रही आतो है. और उसमें वे सब मन्डल ज्यों के त्यों उतने ही काल तक बने रहते है. जब चक्रवर्ती दिवंगत हो जाता है રાજ) ભરત રાજાની આજ્ઞા સ્વીકારીને તેણે તરત જ ઉમેગ્ના અને નિમગ્ના નદીની ઉપર
! स्तमा पोथी पूति विशेषया युतमेव में २मणीय सोमनाया. (करिता जेणेव मरहे राया तेणेव उबागच्छद) मे से मनावाने ५ तन्य भरत विद्यमान
ता त्यो माया (उवागच्छिता) भावान (नाव पयमाणात्तियं पच्चदिपणह) तेरे , ya આજ્ઞા મુજબ જ તૈયાર થઈ ગયા છે, એવી ભરત રાજાને સૂચના આપી અહી એવી આશંકા કરવી એગ્ય નથી કે ઉન્મના નદી તો સ્વભાવે જ એવી છે કે જે વસ્તુ તેમાં પડી જાય છે, તે તેની ઉપર જ રહે છે, ડૂબતી નથી. તે પછી પુલ બનાવવા માટે નાખવામાં આવેલી વતઓ તેમાં નીચે સુધી કેવી રીતે પહોંચી અને ત્યાં કેવી રીતે સ્થિર થઈને જામી ગઈ. એ પુલે વદ્ધકિરન બનાવે છે. એથી તેની શક્તિ અચિંત્ય હોવાથી તેઓ ત્યાં સુસ્થિર જ રહે છે અને તેમની ઉપર થઈને લેકે પાર ઉતરતા રહે છે. તેમજ ચક્રવતીના જીવનકાળ સુધી ગુફા ખુલ્લી જ રહે છે. તેમાં તે સર્વે મંડળો તેના જીવનકાળ સુધી યથાવત
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર