Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पमानम् उपमावर्जितम् अन्यसरशत्वाभावात् 'तं च पुणो' तच्च पुनर्बहुगुणमस्तीति शेषः कीदृशम् ! 'वंसरुक्खसिंगद्विदंतकालायस विपुललोहदंडकवरवइरभेदकं' वंशवृक्षराङ्गास्थिदन्तकालायस विपुललोहदण्डकवरवज्रभेदकम्, तत्र वंशाः प्रसिद्धाः रुक्षाः- वृक्षाः शङ्गाणि महिषादीनाम् अस्थीनि प्रसिद्धानि दन्ताः हस्त्यादीनां कालायसं लोहं विपुललोहदण्डकश्च वरवज्र होरकजातीयं तेषां मेदकम् अत्र वज्रकथनेन दुर्भेद्यानामपि भेदकत्वमुक्तम् किंबहुना ? 'जाव सम्वत्थ अप्पडिहयं' यावत्सर्वत्राप्रतिहतम् दुर्भेदेऽपि वस्तुनि अमोघशक्तिकमित्यर्थः किं पुण देहेसु जंगमाणं किं पुनजङ्गमानां चराणां पशुमनुष्यादीनां देहेषु, अत्र यावच्छन्दो न सङ्ग्राहकः किन्तु भेदकशक्ति प्रकर्षाक्तयेऽवधि सूचनार्थम् अथ तस्य मानमाह- 'पण्णासंगुलदीहो सोलससे अंगुलाई विच्छिण्णो' पञ्चाशदङ्गलानि दीपों यः षोडशाङ्गुलानि विस्तीर्णः तथा 'अद्धंगुलसोणीको' अ गुलश्रोणिकः तत्र अणोवमाण ) संसार में यह अनुमेय माना गया है । क्योंकि इसके जैसे और कोई पदार्थ नहीं है (तंच पुणो वंसरुक्खसिंगढि दंतकालायस विपुल लोहदंडकवरवइरभेदलं)यह वंश-वांस, रुक्खवृक्ष-श्रृंग-महिषादिकों के सींग, हड्डियां, हाथी आदिकोंके दांत, कालायस इस्पात जैसा लोहा,
और वर वज्र इन सब को भेद देता है। वज्र के कथन से यहां यह प्रगट किया गया है कि यह दुर्मेध पदार्थो का भी भेदक होता है। और तो क्या-(जाव सव्वाथ अप्पडिहयं ) यावत् यह सर्वत्र अप्रतिहत होता है। इस दुर्भेध वस्तु के भेद में भी इसकी शक्ति जब अमोघ होती है तो (किंपुण देहेसु जंगमाणं ) फिर जंगम जोवों के देह के विदारण करने में तो इसकी बात ही क्या कहनी यह तो उन्हें खेत की मूली की तरह ही काट देता है। यहां यावत्पद संग्राहक नहीं है किन्तु भेदक शक्ति की प्रकर्षता की अवधि का सूचक है। (पण्णासंगुलदीहो सोलस अंगुलाई विच्छिण्णो) यह असिरत्न ५० पचास अंगुलफी लम्बा होता है और १६ सोलह अंगुल का चौड़ा होता है । ( अद्धंगुलसेणीको) तथा आधे अंगुल की हिन्य मसिरत्न तु . (लोगे अणोवमाणं) संसारमा से अनुपमेय मानवामां आवक्ष
दुभ मेना वा अन्य 36 ५६ छ २४ नहि. (तं च पुणो सरुक्खसिगढिदंत कालायसविपुललोहदंडकवरवइरमेदकं) से श-पांस, ३५-वृक्ष, श्रृंग-महिपाहिजना શિગ, અસ્થિ-હાથી વગેરેના દાંત, કાલાયસ-ઈસ્માત જેવું લેખંડ અને વરવા એ સનું ભેદન કરે છે. વજીના કથનથી અત્રે આ વાત સ્પષ્ટ કરવામાં આવી છે કે એ દુર્ભેદ્ય पहााने पाहीजे. अने भातशु (जाव सव्वत्थ अपपडिहयं) यावत् मे सत्र અપ્રતિહત હોય છે. આ પ્રમાણે દુર્ભેદ્યવસ્તુના ભેદનમાં પણ એની શક્તિ જ્યારે અમોઘ डायत (कि पूण देहेसु जंगमाणं) पछी म ना हेडन विही ४२वामाता વાત જ શી કહેવી. એ તે તેમને સહેજમાંજ કાપી નાખે છે અહીં યાવત પદ સંગ્રાહક नयी ५५ ले शस्तिनी तानी अधिसूयवे छे. (पण्णासंगुलदीहो सोलसअंगुलाई विच्छिण्णो) मे मसिन ५० ५यास मनु मुहाय छे. अने १६ मा २९ पाणु डाय छे. (अद्धंगुलसेणोका) तथा मर्धा मी सनी Mi 4 छे (जेट्ट
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર