Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 697
________________ प्रकाशिका टीका तृ० वक्षस्कारः सू० १३ सुषेणसेनापतेर्विजयवर्णनम् ६८५ प्रभुणा स्वामिना भरतेन सुषेणः सेनापतिः सत्कारितः प्रचुरद्रव्यादिमि:, सम्मानिता बहुमानवचनादिभिः वस्त्रादिभिश्व अतएव सहर्षः प्राप्तप्रचुरसत्कारत्वात् विसृष्टः स्वस्थानगमनाय अनुज्ञातः सन् स सेनापतिः स्वकं निजं पटमण्डपं दिव्यपटकृतमण्डपं मध्यमपदलोपी समासः षटमण्डपोपलक्षितं प्रासादं वा सुषेणः सेनापतिः अतिगतः प्राविशत् 'तरणं सुसेणे सेणावईण्हाए कयबलिकम्मे कयको उय मंगलपायच्छित्ते' ततः खल स सुषेणः सेनापतिः स्नातः कतबलिकर्मा- वायसादिभ्यो दत्तान्न भागः कृतकौतुक मङ्गलप्रायश्चित्तः सन् 'जिमिय भुतत्तरागए समाणे जाव' जिमितः उक्तवान् राजवि - धिना, भुक्त्युत्तरं - भोजनोत्तरकाले आगतः सन् उपवेशनस्थाने, अत्र यावत् पदात् 'आयं चोक्खे परमसुई भू' इतिग्राहाम आचान्तः शुद्धोदकेन कृतहस्तमुखशौचः चोक्षो सिक्थापनयने, अतएव परमशुचीभूतः इदं च पदत्रयम् भुत्तत्तरागए समाणे' इति पदात् पूर्व योज्यम् तथैव शिष्ट ननक्रमस्य दृश्यमानत्वात् पुनः सेनापतिः कीदृशोऽभूत इत्याहसरस गोसीस इत्यादि सरसगोसीस चंदणाणुक्खित्तगाय सरीरे, सरस-गोशीर्षचन्दनोक्षितगा पटमंडप से उपलक्षित प्रासाद में - आगया (तरणं से सुसेणे सेणावइ हाए कयबालकम्म कयकाउय मंगलपायच्छित्ते) वहां आकर के उस सुषेण सेनापति ने स्नान किया बलिकर्म कियाकाक आदि कों के लिये अन्न का विभागकिया - कौतुक मंगल प्रायश्चित किया ( जिमियभुतुतरागए समाणे) बाद में राजविधि अनुसार भोजन किया भोजन करनेके बाद फिर वह उपवेशन स्थान में आया- यहां यावत्पद से "आयंते, चोक्खे परमसूईभूए" इन पदों का ग्रहणहुआ है भोजन कर चुकने पर शुद्ध जल से हाथ मुंह धोना इसकानाम आचान्त है शरीर पर पडे हुए खाने के सीत आदि को दूर करना इसका नाम चोक्ष है इस प्रकार सब प्रकार से शरीर को हाथ-मुंह आदि धोकर और उसपर पडे हुए भोजन के अंश को हटाकर बिल कुल साफ सुथरा बनालेना इसका नाम परमशुचो भूत होना है। इस पदत्रय की योजना “भुत्तत्तरागए समाणे" इस पद से पूर्व करनी चाहिये क्योंकि शिष्टजनो में इसी प्रकार का क्रम देखा गया है । (सर सगोसीसचदणाणुक्खित्तगाय सरीरे) पटमंडपथी उपलक्षित प्रासादमां भावी गये। (तपणं से सुसेणे सेणावर पहाए कयवलिकम्म कयको उयमगलपायच्छत्ते ) त्यां व्यापीने ते सुषेण सेनापतियो स्नान यु सिम्म કર્યુ કાક વગેરેને માટે અન્ન ભાગ અર્પિત કરીને કૌતુક મંગળ અને પ્રાયશ્ચિત કર્યાં (जिमिय भुत्तुत्तरागप समाणे) त्यारणा राबविधि भुल्भ लोन लोभन अरीने पछी ते उपवेशन स्थानमा आयो महीं यावत् पथी (आयंते चेक्खे परमसूई મૂલ )એ પદાનુ ગ્રહણ થયું છે. ભેાજન કર્યાં પછી શુદ્ધ પણીથી હાથ મા ધેાવાં તે માચાન્ત કહેવાય છે. શરીર ઉપર પડેલા ભેજનના સીત વગેરે દૂર કરવા તે ચેાક્ષ કહેવાય છે. આ પ્રમાણે સવ રીતે હાથ મો વગેરે સ્વચ્છ કરીને અને શરીર ઉપર પડેલા ભેાજનના કણેને હટાવીને શરીરને એકદમ સ્વચ્છ બનાવી લેવુ. તેનુ ં નામ પરમ શુચીભૂત છે. એ પદત્રયની यन्ना (भुतरागए समाणे) मे पहोनी पूर्व १२वी अपेक्षित छे 3 शिष्ट सोम्भां ९. જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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