Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे
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एकवचनस्यौचित्येन यन्निवेदयाम इत्यत्र बहुवचनं तत्सपरिकरस्यापि आत्मनो निवेदकत्व ख्यापनार्थं तच्च बहुनामेकवाक्यत्वेन प्रत्योत्पादनार्थम् अथवा अस्मदो द्वयोश्वेति सूत्रेण एकत्वे द्वित्वे च विवक्षिते बहुवचनम् इति बोध्यम् ऐतत् प्रियम् इष्टं अभीष्टं भे भवतां भवतु ततो भरतः किं कृतवान् इत्याह- 'तरणं' इत्यादि 'तपणं से भरहे राया मुसेणस्स सेणावस अंतिए एयमहं सोच्चा निसम्म हहतुट्ठ चित्तमानंदिए जाव हिअए सुसेणं सेणावई सक्कारेs सम्माणई' ततः - कपाटोद्घाटन निवेदनानन्तरं खलु स षट्खंडाधिपति भरतो राजा सुषेणस्य सेनापतेः अन्तिके समीपे एतमर्थ कपाटोद्घाटननिवेदनानन्तरं खलु स भरतो राजा सुषेणस्य सेनापते: अन्तिके समीपे एतमर्थ पाटोद्घाटनारूपं श्रुत्वा निशम्य हृदये अवधार्य हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः यावद्ह्रदयः सुषेणं - तन्नामानं सेनापतिं सत्कारयति बहुमूल्य द्रव्यादिभिः सन्मानयति प्रियवचो भिः, सन्मानयति प्रियवचोभिः 'सक्कारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सन्मान्य च 'कोईविपपुरिसे सहावे' कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति आहयति सदावित्ता एवं
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एमो" मैं जो बहुवचन का प्रयोग किया गया है वह समस्तपरिकर सहित सेनापति के निवेदन करने को प्रकट करने के लिए किया गया है अर्थात् सब परिवार मिलकर सेनापति के मुखसे यह शुभ संबाद का अपनेराज भरत से निवेदन कर रहे हैं ऐसा जानना चाहिए अथवा - " अस्मदो द्वयोश्व" इस सूत्र से एकत्व अथवा द्वित्व विवक्षित होने पर भी बहुवचन प्रयुक्त होजाता है. इसके अनुसार यहां बहुवचन प्रयुक्त हुआ है । (तएण से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ट तुट्ठ चित्तमाणंदिए जाब हियए सुसेणं सेणावई सक्का रेइ' सम्माइ) इसके बाद महतराजाने सुषेण सेनापति से इस अपके अभीष्ट अर्थ संपादित होने की बात सुनी तो वह उसे सुनकर और उसे हृदय से निश्चिय कर हृष्ट तुष्ट चित्तानंदित हुआ यावत् उसका हृदय आनन्द से उछलने लगा और उसने उसी समय सुषेगसेनापति का बहुमूल्य द्रव्यादि प्रदान करके सत्कार किया और प्रियवचनों द्वारा उसका सन्मान किया. (सक्का - रित्ता सम्माणित्ता कोटुंबिय पुरिसे सदा वेइ) सत्कार सन्मान करके फिर उसने कौटुम्बिक पुरुषों પરિકર સહિત સેનાપતિના નિવેદન કરવા માટે પ્રકટ કરવામાં આાવેલ છે એટલે કે સમસ્ત પરિકર મળીને સેનાપતિના મુખથી એ શુભ સવાદ પેાતાના રાજા ભરતને નિવેદન કરે છે આમ સમજવુ' જોઈ એ અથવા અમોદ્રોથ એ સૂત્રથી એકત્વ ખથવા દ્વિત્ર વિક્ષિત હેવા છતાંએ ખહુવચન પ્રયુક્ત થઈ જાય છે. એ મુજબ અહી બહુવચન પ્રયુક્ત થયેલ છે. (तरण से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयमहं सोच्या निसम्म हट्ट तुट्ठ चित्तमानं दिए जाव हियए सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्मानेइ) त्यार माह भरत रानमे સુષેણ સેનાપતિના મુખથી સ્વાભિષ્ટ અથ' સંપાદિત થવા સબધી વાત સાંભળી અને તે પછી તેવાત હૃદયમાં નિશ્ચિત કરીને તે રાજા હષ્ટ-તુષ્ટ ચિંતાનંદિત થયેા યાવત્ તેનું હદય આન'દથી ઉછળવા લાગ્યુ. અને તેણે તેજ સમયે સુષેણ સેનાપતિના બહુમૂલ્ય દ્રવ્ય माहिग्रहान ने सत्र अर्यो भने प्रियवयनाथी तेनु सन्मान 5. ( सचकारिता
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર