Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका तृ. वक्षस्कारः सू०१० रथवर्णनपूवर्क भरतस्य रथारोहणम् ६३१ प्रवालविशेषः तैः विभूषितः तथा तम् 'अडयालीसाररइयतवणिज्जपट्टसंगहिय जुत्ततुंबं' अष्टाचत्वारिशदररचित तपनीय पट्टसंगृहीत युक्ततुम्बम्, तत्र-रचिताः-सुष्ठुनिर्मिताः प्रतिदिशं द्वादश २ सद्भावात् उभयत्र अष्टाचत्वारिंशदरा यत्र ते तथा, अत्र 'अडयालीसार रइय' इति मूलसूत्रे 'रइय' इति विशेषणस्य पूर्वे प्रयोक्तव्ये परनिपातः प्राकृतत्वात् तथा तपनीयपट्टः रक्तस्वर्णमयपट्टिकैः लोके महल इति प्रसिद्धैः संगृहीते दृढीकृते तथा युक्ते यथा-योग्ये नाति लघुनी नाति महती ततः पदत्रयस्य कर्मधारये कृते सति एतादृशे तुम्बे यस्य स तथा तम् 'पघसिय पसिय निम्मिय नव पट्टपुट्टपरिणिढियं' प्रधर्षितप्रसितनिर्मित नवपट्टपृष्ठपरिनिष्ठितम्, तत्र प्रघर्षिता:-प्रकर्षण घृष्टाः प्रसिता प्रकर्षण बद्धा ईशा निमिताः निवेशिताः नवाः नूतनाः पट्टाः पट्टिका यत्र तत् तथाविधं यत्पृष्ठं चऋपरिधिरूपं गोलाकाररूपं 'हाल' इति प्रसिद्धम्, तत्परिनिष्ठितं सुनिष्पन्न कार्यनिर्वाहकत्वेन यस्य स तथा तम् 'विसिद्ध लढणवलोहबद्धकम्मं विशिष्टलष्टनवलोहबद्धकर्माणम्, तत्र विशिष्टलष्टे अतिमनोहरे नवे नबी ने लोह बर्धे लोहश्चर्मरज्जुके तयोः कर्मकार्य वर्तते यत्र स तथा तम् पुनश्च कीदृशम् ‘हरिपहरणरयणसरिसचक्क' हरिप्रहरणरत्न सशचक्रम्, तत्र हरिः वासुदेवः तस्य प्रहरणरत्नं चक्ररत्नं तत्सदृशे चक्रे चक्रद्वयं स तथा तम्, पुनश्च 'कक्केयणइंदनीलसासगसुसमाहियबद्धजालकडगं' कर्केतनेन्द्रनीलप्रत्येक दिशा में १२-१२-होनेसे ४८ इसमें अर थे रक्त स्वर्णमय पट्टको से महलुओं से-दृढीकृत तथा उचित्त इसके दोनों तुंबे थे (पघसियपसियनिम्मिय नवपट्ट पुट्टपरिणिद्विय ) इसका पुठी में जो पट्टिकाए लगी हुई थो-वे प्रघर्षित थी-खुब-घिसी हुई थी-अच्छी तरह से उसमें बद्ध थी और अजीर्ण थी, नवीन थी (विसिट्ठलणवलोहबद्धकम्म) विशिष्ट लष्ट-अति मनोहर-नवीन लोहे से इसमें काम किया गया था अर्थात् मजबूती के लिए जगह २ इसमें-नवीन नवीन लोहे की कोले एवं उनकी सुन्दर पत्तियें लगी हुई थी अथवा टीका के अनुसार इसके अवयव नवीन लोहे से एवं नवीन चर्म की रज्जुओ से जकडे हुए थे ऐसा अर्थ होता हैं । (हरिपहरणरयणसरिसचक्क) इसके दोनों पहिये वासुदेव के चक्ररत्नके जैसे गोल थे (कक्केयणइंदणील सासग सुसमाहिय बद्धजालकडगं ) इसमें जो जालसमूह था वह कर्केतन चन्द्रकान्तादि मणियों-से, इन्द्रनीलसंगहियजुत्ततुंब) १२४ दिशामा १२-१२ माम मा भगान ४८ अभी १२४ ता. २४ स्वार्थ भय ५४थी-महसुसोथी-टीत यत येना मन्नतुमा हता. (पघसियपतियनिम्मियनवपट्टपुट्ट परिणिठियं) सनी ही मारे ५६३१इती. प्रत तो भूम।
नमकता , नवान हता. (विसि लट्टणवलाह बद्धकम्म) विशिष्ट-सट-यति भनाइ२-नवीन सोम थी तमाम ४२ रतु मे है મજબૂતી માટે સ્થાન-સ્થાનમાં તેમાં નવી-નવીન લોખંડની ખીલીઓ તેમજ પત્તિઓ લાગેલી હતી. અથવા ટીકા મુજબ તેના અવય નવીન લોખંડથી તેમજ નવીન ચમની २०माधी मार हता. यावा मथ थाय छे. (हरिपहरणरयणसरिसचक्क) भेना भन्ने डाय वासुविना यत्नवा माण ता. (कक्केयण इंदणोल सासग सुसमाहिय बद्धजालकडगं) मेरे ate समूह त तन Ariale, मणि-माथी नी
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર