Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका तृ० वक्षस्कार सू. ५ अष्टाव्हिकामहामहिमासमाप्त्यनन्तरीयकार्य निरूपणम् ५७७
चामराहिं उद्धुच्वमाणीहिं२' तथा श्वेतवर चामरैरुत्धूयमानैः २ सह वीज्यमानैः सह इति 'जक्खसहस्स संपरिवुडे' यक्षसहस्रसंपरिवृत्तः यक्षाणां देवविशेषाणां सहस्त्राभ्यां, संपरिवृतः चक्रवर्त्तिशरीरस्य व्यन्तरदेव सहस्रद्वयाधिष्टितत्वात् 'वेसमणे चेव घणवइ' वैश्रवण इव धनपतिः धनस्वामी कुबेर इव 'अमरवइ सणिभाए इड्ढीए पहिय कित्ती' अमरपति सन्निभया इन्द्रसदृश्या ऋद्धया प्रथितकीर्त्तिः विस्तृतकीर्तिः 'गंगाए महाईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं' गङ्गायाः महानद्याः दाक्षिणात्येन दक्षिणदिगवस्थितेन कूलेन तटेन 'गामागरणगरखेडकब्बड मड व दोण मुहपट्टणासमसंवाह सहस्समंडियं' ग्रामाकर नगरखेटकर्बट मडम्ब द्रोणमुखपत्तनाऽऽश्रम संवाहसहखमण्डिताम्, तत्र - ग्रामः- वृतिवेष्टितः, आकरः सुवर्णरत्नाद्युत्पत्तिस्थानम् नगरं प्रसिद्धम् खेटम् - धूलिप्राकारपरिवह मागध तीर्थ था वहां पर आये जिस समय ये भरत राजा हाथी के ऊपर बैठे हुए इस तीर्थ की तरफ आ रहे थे - उस समय इनके ऊपर - सकोरंट कोरंट पुष्पों की माला से युक्त छत्र छत्रधारियों ने तान रक्खा था (सेयवरचामराहिं उदधुव्वमाणीहिं २ जक्खसहस्ससंपरिवुडे वेसमणे चैव धणवई अमरवइसन्निभाए इड्ढीए पहिअकित्ती ) इसके ऊपर चामर ढोर नेवाले जन बार २ वे श्रेष्ठ चामर ढोर रहे थे क्योकि चक्रवर्ती का शरीर दो हजार देवों से अधिति होता है कुबेर के जैसे ये धन के स्वामी थे और इन्द्र के जैसे ऋद्धि से ये विस्तृत कीर्ती वाले थे (गंगा महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं) ये महानदी गंगा के दाक्षिणात्यकूल से पूर्वदिग्वर्ती मागघतीर्थ की ओर चले उस समय ये (गामागरनगर खेटकब्बड मडंब दो मुह पट्टणासम) वृति वेष्टितग्रामों से सुवर्ण रत्नादिक उत्पत्ति स्थान रूप आकरों से, नगरों से, धूलिके प्राकार से परिवेष्टित खेटो से, क्षुद्र प्राकार से वेष्टित कर्बटों से ढाई कोश तक ग्रामान्तर से रहित मडम्बो (छोटा गाम) से, जल मार्ग एवं स्थल मार्ग से युक्त जननिवास रूप द्रोण
જે વખતે એ ભરત રાજા હાથી ઉપર સવાર થઈને એ તી તરફ આવી રહ્યા હતા, તે સમયે તેમની ઉપર સકેર્ટ-કારટ પુષ્પાની માળાથી યુક્ત છત્ર છત્રધારીઓએ તાણી राभ्यं हेतु (सेयवरचामराहि उदुव्वमाणीहिं २ जक्खसहस्समं परिवुडे समणे चैव धणवई अमरवइ सन्निभाए इड्ढीप पहिअकित्ती) खेनी उपर यभर ढोजनारा વારંવાર શ્વેત-શ્રેષ્ઠ ચામર ઢાળી રહ્યા હતા. બે હજાર દેવાથી તેઓ આવૃત હતા કેમકે, ચક્રવર્તિનુ શરીર એહજાર દેવોથી અધિષ્ઠિત હૈાય છે. કુબેર જેવા એએ ધનસ્વામી હતા याने 'द्रनी लेवी ऋद्धिथी थे। विस्तृत डीर्तिवाजा हता. (गंगा महाणईप दाहिणिलेणं कूलेणं) येथे। महानही गंगाना दाक्षिणात्य इसथी पूर्व हिग्वर्ती भागध तीर्थ तर खाना थया ते समये येथे (गामागरनगरखेड कब्बडमंड बदोणमुहपट्टणासम) वृति वेष्टित भोथी, सुवर्ण रत्नाहिना उत्पत्ति स्थान ३५ मा रोधी, नगरौथी, યૂલિના પ્રાકારાથી પરિવષ્ટિત ખેટોથી, ક્ષુદ્ર પ્રાકારવેષ્ટિત કટાથી, અહી ગાઉ સુધી ગામાન્તર-રહિત મ બાથી, જલમાગ અને સ્થળમાથી યુક્ત જનનિવાસ રૂપ
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જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર