Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका तृ. वक्षस्कार सू. ३ भरतराज्ञः दिग्विजयादिनिरूपणम् दकादिभिरीपत्सित्ता, संमार्जिता समाजनैः परिस्कृता अतएव शुचिका संमृष्टा रथ्या राजमार्गोऽन्तरवीथी च अवान्तरभागो यस्यां सा तथा ताम् 'मंचाइमंचकलियं' तत्र मञ्चातिमञ्चकालिताम् मञ्चाः-मालकाः दर्शकजनोपवेशनार्थम् अतिमञ्चाः तेषामप्युपरि ये तैः कलिता युक्ता ताम् 'णाणाविह रागवसण असिअझयपडागाइपडागमंडियं' तत्र नानाविधो रागो-रजनं येषु तानि वसनानि वस्त्राणि येषु तादृशा ये उच्छ्रिता उ:कृता ध्वजाः-सिंहगरुडादिरूपकोपलक्षिता बृहत्पट्टरूपाः पताकाश्च तदितररूपाः, अतिपताकाः तदुपरि वतिन्यः पताकास्ताभिर्मण्डिताम् 'लाउल्लोइयमहियं' तत्र लापितोल्लोचितमहितां यद्वा लिप्तोल्लोचितमहिताम्, तत्र लापितं छगणादिना लेपनम्, उल्लोचितं सेटिकादिना कुड्यादिषु धवलनं ताभ्यां महितमिव महितं शोभितं प्रासादोदि यस्यां सा तथा ताम्, यद्वा लिप्तं छगणादिना, उल्लोचितम् उल्लोच युक्तं प्रासादादि यस्यां सा तथा ताम् 'गोसीससरसरत्तचंदणकलसं' गोशीषेसरसरक्तचन्दनकलशां तत्र गोशीः सरसरक्तचन्दनैश्च युक्ताः शोभार्थं कलशाः यस्यां ताम् 'चंदणघडसुकय जाव गंधुडुयाभिरामं' चन्दनघटसुकृत यावद्गन्धोधूताभिरामाम् अत्र यावत्पदेन 'चंदण घड मुँह करके अच्छी तरह से वैठ गया (तएणं से भरहे राया कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ) बादमें उस भरत राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया (सद्दावित्ता एवं बयासी) और बुलाकर उनसे उसने ऐसा कहा -- (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया विणीअं रायहाणिं सभितरबाहिरिअं आसिय संमज्जियसित्त सुइगरत्यंतरवाहियं मंचाइमंचकलिअं) हे - देवानुप्रियो ! आपलोग बहुत ही जल्दी विनीता राजधानी को भीतर और बाहर से बिलकुल साफ सुथरी करो सुगंधित पानी से उसे सिञ्चित करो, बुहारी से कूडा कचरा निकाल कर उसकी सफाइ करो की जिससे राजमार्ग और अवान्तर मार्ग अच्छी तरह साफ सुथरे हो जावें दर्शक जनों के बैठने के लिये मंचों के ऊपर मंचो की सुसज्जित करो (णाणाविहरागवसणऊसिअ झयपडागाइपडागमंडियं) अनेक प्रकार के रंगों से रंगे हुए वस्त्रों की ध्वजाओं से पताकाओं से-कि जिनमें सिंह गरुड आदि के चिह्न बने हो तथा अतिपताकाओं से-इन पताकाओं के उपर फहरातो हुइ बड़ी२ लम्बी पताकाओं से-उसे मण्डित करो (ला उल्लोइयमहियं ) जिनकी नाचेकी जमीन गोबर आदि से लिपी हो और चूने की कलई से जिनकी दीवारें पुती हों ऐसे प्रासादादिको वालो उसे बनाओ (गोसीससरसरत्तचंदणकलसं) शोभा के निमित्त हर एक दरवाजे पर ऐसे कलशो को रखो कि जो गोशीर्षचन्दन से और रक्तचंदन से उपलिप्त हो (चंदनघडसुकय जाव गंधुद्ध्याभिरामं ) ओने सवा माटे भयानी 3५२ भयान सुसछत ३१. (णाणाविहरागवसणऊसिअझय पडागाइ पडागमडिय) अनेकतना माथी २सेवा वस्त्रोनी माथी-पतासाथी કે જેની અંદર સિંહ, ગરુડ વગેરેના ચિહ્નો હોય તેમજ અતિ પતાકાઓથી-એ પતાકાઓની ઉપર ફકતી બહુજ મોટી-મોટી લાંબી પતાકાઓથી-વિનીતા નગરીને મંડિત કરે (ला उल्लोइय महिय) रेमनी नीयनी भूमि छ। पोथी सित य मने यूनानी थी
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જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર