Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे टीका-"तीसे गं भंते !" इत्यादि । (तीसे णं भंते ! समाए) तस्यां खलु भदन्त समायां ! हे भदन्त उत्सर्पिणी संबन्धिन्यां दुष्पमायां समायां (भरहस्स वासस्स) भरतस्य वर्षस्य भरतक्षेत्रस्य (केरिसए आयारभावपडोयारे) कीदृशक आकार भावप्रत्यवतारः प्रज्ञप्तः प्ररूपितः ? (बहुसमरणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ) बहुसमरमणीयो भूमिभागो
भविष्यति (जाव कित्तिमेहिंचेव अकित्तिमेहिं वेव) यावत् कृत्रिमैश्चेव अकृत्रिमश्चैव । अत्र यावत्पदेन (से जहा नामए आलिंगपुक्खरेइ वा) इत्यारम्य (कित्तिमेहि चेव) इत्यवधिकः पाठः संग्राह्य इति । गौतमस्वामी पुनः पृच्छति-(तीसेणं भंते ! समाए) तस्यां खलु भदन्त । समायां दुष्षमायां समायां (मणुयाणं) मनुजानां (केरिसए) कीदृशकः (आयारभावपडोयारे ) आकारभावप्रत्यवतारो भविष्यति ? भगवानाह (गोयमा ।) गौतम ! (तेसि णं मणुयाणं ) तेषां खलु मनुजानां (छविहे) पविध-पदप्रकारकं (संघयणे) प्रत्यवतार के विषय में सूत्रकार कथन करते हैं 'तीसेण भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए ।
टीकार्थ-गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है (तीसे ण भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ) हे भदन्त ! उत्सर्पिणी सम्बन्धी इस दुष्षमा काल में भरत क्षेत्र को आकार भाव का प्रत्यवतार स्वरूप-कैसा होगा ? इस प्रकार गौतम के पूछने पर प्रभु ने कहा है (गोय. मा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविसस्सइ) हे गौतम ! उस काल में भरत क्षेत्र का भूमिभाग बहु सममरणीय होगा (जाव कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव) यावत् वह कृत्रिम अकृत्रिम मणियों से सुशोभित होगा यहां यावत्पद से यही "आलिंगपुक्खरेइवा" इस पाठ से लेकर "कित्तिमेहिं चेव" तक का पाठ गृहीत हुआ है अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(तीसे णं भंते ! समाए मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ) हे भहन्त ! उस दुष्षमा नाम के आरे में मनुष्यों का आकार भाव का प्रत्यवतार स्वरूप कैसा होगा ! इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! तेसिणं मणुयाणं छविहे संघयणे छविहे संठाणे, बहुईओ रयणीओ उ8 उच्चत्तेणं) हे गौतम ! उन मनुष्यो के પ્રત્યવતીર ના સંબંધમાં સૂત્રકાર કથન કરે છે
'तीसेण भंते ! समाए भरहस्स वसस्स केरिसए, इत्यादि सूत्र २८
टी--गीतमे प्रभुने मा प्रमाणे प्रश्रय (तीसेण भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभाबपडोयारे भविस्सइ) ३ महन्त सपिही सच्ची से दुषमा सभा ભરત ક્ષેત્રના આકારભાવના પ્રત્યવતાર એટલે કે સ્વરૂપ કેવું હશે ? આ પ્રમાણે ગૌતમસ્વામીએ प्रश्न या पछी प्रभुमे यु (गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविसस्सइ) : गौतम ! से मा भरत क्षेत्रनो भूमिमा मसभरमणीयथ(जाव कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहिं चेव) यावत ते तिम मतिम मणिमयी सुशामित थशे मही यावत् ५४थी आलिंगपुक्खरेइवा" 1840 ने "कित्ति प्रेहि चे" सुधीना ५४ हात थय। छे. इव गौतम स्वामी ओम पूछे छ (तीसेण भंते ! मणुपाणं केरिसए आयार भाव पडोयारे 3 महन्त ! तेहुपम नाममारामा મનુષ્યના આકાર ભાવના પ્રત્યવતાર (એટલે કે સ્વરૂપ કેવું હશે? એના જવાબમાં પ્રભુ કહે છે (गोयमा! तेसिण मणुयाणं छबिहे संघयणे, विहे संठाणे बदुईओ रयणी उढे उच्चत्ते ण)
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર