Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिकाटीका द्वि० वक्षस्कार सू०० ५४ षष्ठारकस्वरूपनिरूपणम्
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बीजमात्रा :- बीजस्येव मात्र परिमाणं येषां तथा स्वरूपतः स्वल्पा इत्यर्थः । हे गौतम ! दुष्षमदुष्षमायां समायां 'दूरूवा' इत्यारभ्य 'बिलवासिनः' इत्यन्तविशेषण पदैर्निरूपिता मनुजा भविष्यन्तीति भवद्भिर्विज्ञेयम् । पुनर्गेौमतस्वामी पृच्छति (तेण भंते मणुआ किमाहरिस्संतिः) ते खलु भदन्त ! मनुजाः किमाहरिष्यन्ति, हे मदन्तः ! दुष्षमदुष्पमासमोत्पन्ना मनुष्या किंविधमाहारं कुर्वन्ति ? इति गौतम स्वामिनः प्रश्नः । भगवानाह ( गोयमा) हे गौतम! (तेका लेणं तस्मिन् काले दुष्पमदुष्पमालक्षणे काले ( तेणं समपुर्ण ) तस्मिन् समये दुष्पमायाः प्रान्तभागे (गंगासिंधूओ महाणईओ) गङ्गासिन्धू महानद्यौ कीदृश्यों महानद्यौ ? (Reeffथराओ ) रथपथमात्रविस्तरे - रथस्य पन्था रथपथः रथगमनमार्गः, तत्परिमाण विस्तरो विस्तारो ययोस्ते तथाविधे, (अक्खसोयपमाणमेत्तं ) अक्षस्रोतः प्रमाणमात्रम् अक्ष: चक्रं तस्य यत् स्रोतो- रन्ध्रे तत्प्रमाणा = तत्परिमाणा मात्रा = प्रमाणम् अवगाहनाप्रमाणं यस्य तत्तथाविधं (जल) जल ( वोज्झिहिंति) वक्षतः । गङ्गासिन्ध्वोर्महानद्येोर्वि स्तारो रथपथमात्रप्रमाणो जलावगाह प्रमाणं रथचक्रस्त्रोतः परिमितं च भवतीति बोध्यम् इति भावः । (सेवि य णं जले) तदपि च जलं (बहुमच्छकच्छभाइण्णे) ये स्वरूप से स्वल्प होंगे इस तरह हे गौतम ! दुष्षमदुष्षमा काल में 'दूरूवा' पद से लेकर 'विलवासिन: ' इस अन्तिम विशेषण रूप पदों तक के पदों द्वारा हमने छठवें आरे- काल के मनुष्यों का वर्णन किया अब गौतम स्वामी पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( तेणं ! भंते मणुआ कमा हरिरसंति) हे भदन्त ! वे छट्ट आरे के मनुष्य कैसा आहार करेंगे ? उत्तर में प्रभुकहते हैं (गोय मा! तेणं कालेणं तेणं समएणं गंगा सिन्धुओं महाणईओ) हे गौतम! उसकाल में और उस समय में गंगा एवं सिन्धू नाम की दो नदियां रहेगी ये नदियां (रहपहमित्त वित्थराओ) रथ के गमन मार्ग का जितना प्रमाण होता है उतने प्रमाण के विस्तार वाली होंगी (अक्खसोयपमाता) इन में रथ के चन्द्र के छिद्र के बराबर जिसकी अवग़ाहना का प्रमाण होगा इतना जल बहता रहेगा अर्थात् इनकी गहराई बहुत थोड़ी होगी. रथ के चक्र के छेद की जितनी गहराइ होती है उतनी गहराई वाला उनमें जल रहेगा ( से वि य णं जले बहु मच्छकच्छभाइण्णं णो चेव સુષ્ટિ થશે. એએ સ્વરૂપમાં સ્વલ્પ હશે. આ પ્રમાણે હિ ગૌતમ ! ક્રુષ્ણમદ્રુમાકાળમાં 'दुवा' पहथी भांडीने "विलवासिनः " या अंतिम विशेषण ३५ पो सुधीना यही वडे અમેએ છઠ્ઠા આરાના વખતના મનુષ્યાનુ વર્ણન કર્યું છે. હવે ગૌતમ સ્વામી કરીથી પ્રભુશ્રીને प्रश्न ४२ छे - (ते भंते ! मणुआ किमाहरिस्संति) हे मत ! ते छठ्ठा खराना भनुष्यो देव आहार २१ वा छे- (गोयमा ! तेणं कालेण तेणं समरणं गंगा सिंधूओ महाणईओ) हे गौतम! ते अजमां अने ते समय मां गंगा ने सिन्धु नाभे मे नहीं थे। हशे थो भन्ने नही थे। (रहपहमित्त वित्थराओ) रथना गमन भागतु नेट अभा होय छे, तेरा प्रमाण भेटला विस्तारवाणी इशे, (अक्खसोयप्रमाण में न्त) भन्ने नही गोभी થના ચન્દ્રના છિદ્ર તુલ્ય જેની અવગાહનાનુ` પ્રમાણ હશે, તેટલું પાણી વહેતુ રહેશે. એટલે કે એ બન્નેની ઊંડાઈ સાવ ઓછી હશે. રથના ચક્રના છિદ્રની જેટલી ઊંડાઈ હાય
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જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર