Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिकाटीका द्वि० वक्षस्कार सू. ५६ अवसपपिणी दुष्बमारक वैशिष्य निरूपणम् ४९१ मेहे) रसमेघो नाम महामेघः ( पाउ भविस्स) प्रादुमैविष्यति (महरप्पमाणमित्ते आयामेणं) भरतप्रमाणमात्रं आयामेन (जाव वासं वासिस्सर) यावद वर्ष वर्षिष्यति (जेणं) यः खलु ( तेसिं) तेषां पूर्वोक्तानां (बहूणं) बहूनां = बहुसंख्यकानां (रुक्ख गुच्छ गुम्म-लय- वल्लि - तण - पव्वग - हरित - ओसहि - पवालं - कुरमाईणं) वृक्ष - गुच्छ - गुल्म- लता - वल्ली - तृणपर्वग हरितौ-पधि- - प्रवाला- -कुरादीनां (तित्त-कटु- कसाय - महुरे ) तिक्त कटुककपायाम्ल - मधुरान् (पंचविहे रसविसेसे) पञ्चविधान् रसविशेषान् - तिक्तादीन् पञ्चप्रकारान् रसान् (जणइस्सइ) जनयिष्यति = उत्पादयिष्यति । पञ्चविधेषु रसेषु तिक्तो रसोनिम्बादिषु, कटुको मरीचादिषु कपायो हरीतक्यादिषु, अम्लश्चिञ्चादिषु, मधुरव शर्करादिषु बोध्यः । लवणरसस्य मधुरादि संसर्गजत्वेन न पृथगुपन्यासः । पञ्चानां प्रयोजनं यद्यपि सूत्रे एव प्रोक्तं तथापि स्फुटतरप्रतिपत्तये पुनरप्यत्रोच्यते तथाहि - पुष्कलसत्तरतं णिवत्तितंसि समासि ) इस प्रकार से यह अमृतमेध सात दिन रात तक वरसता रहेगा- इसी के भीतर (एत्थणं रसमेहे णामं महा मेहे पाउन् भविस्सइ) यहां एक और महामेघ प्रकट होगा - जिसका नाम रसमेघ होगा. यह रसमेध भो ( भरहृप्पमाणमित्तं आयामेण जाव वासं वासिस्सइ) | लम्बाई चौड़ाई एवं स्थूलता में भरत क्षेत्र की लम्बाई चौडाई और स्थूलता के बराबर का होगा और यह भी भरतक्षेत्र की भूमिपर सात दिन रात तक लगातार वर्षता रहेगा ( जेणं बहूणं रुक्ख - गुच्छ - गुग्म - लय - वल्लि - तण - पब्वग - हरित - ओसहिं- पवालंकुरमाईणं तित्त, कड्डुय- कसाय- अबिल - महुरे ) यह रस मेघ अनेक वृक्षों में, गुच्छों में, गुल्मों में, लताओ में बल्लियों में, तृणों में पर्वतो में हरित दुर्वादिकों में औषधियों में प्रवालों में और अंकुरादिको में तिक्त, कटुक, कषायला, आम्ल और मधुर (पंचविहे रसविसेसे) इन पाँच प्रकार के रसविशेषों को (इसइ) उत्पन्न करेगा. इन पांच प्रकार के रसों में तिक्तरसनिम्ब आदिकों में, कटुक रस मरोच आदिकों में कषायरस हरोतकी आदिकेां में, अम्लरस चिञ्चा ईमली आदिकों में और मधुर रस शर्करा आदिकों में होता है. लवणरस मधुरादि के संसर्ग से उत्पन्न होता है.
रात सुधी वर्षत रहेशे. यानी अंडर ४ ( एत्थ णं रसमेहे णामं महा मेहे पाउभविस्सइ) यहीं गोड जीले महामेघ आउट थशे. हेतु नाम समेध इथे. आरसभेध पशु (भरहप्प माणमित् आयामेण जाव वास वासिस्सइ) सगाई, पहाणार्थ मने स्थूलतामां भरतक्षेत्रना પ્રમાણ જેટલા હશે આ પણ ભરતક્ષેત્રની ભૂમિપર સાત દિવસ અને રાત સુધી સતત વર્ષાંતે रहेशे । जेण बहूणं रुक्ख गुच्छ गुम्मलय वल्लि तण पव्वग हरित ओसहि पवालंकुरमाईण तित्त, कड्डय कसाय अबिल महुरे) से रसमेध भने वृक्षेयां, गुछामां, गुल्मीमा, सलाम, વલિએ માં, તુણામાં પ તામાં, હરિત દુર્વાદિકેામાં, ઔષધિમ્મામાં, પ્રવાલે માં અને અંકુરાદિभांतिस्त, उटु, उषाया, आस ने मधुर (पंवि रसविसेसे) पांय प्रारना रसविशेषाने (जणइस्सइ) उत्पन्न १२शे मे यांय प्राश्ना रसोभां तिरसनियम माहिमां, टु રસ મરીચ આદિક માં કષાયરસ હરીતકી કિામાં, અમ્લરસ ચિ ંચા આમલી આદિકમાં અને મધુરરસ શ રા આદિકામાં હૈાય છે. લવણરસ મધુરાદિકાના સસથી ઉત્પન્ન થાય છે એથી
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર