Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनु. विषय
पाना नं.
१८ दशम सूयमा सवतरा, हशभ सूत्र और छाया ।
२०० २० छितनेछन, भातापिता, ज्ञातिसन्धु और धन
धान्याहिठोंछो छोऽ र संयभ लेते हैं और उस संयभछा पालन अच्छी तरह उरते है, परन्तु जामें वे ही होषवश संयभसे गिर पडते हैं, हीन-हीन हो हर व्रतविध्वंस हो नते हैं।
२०० २१ ग्यारहवें सूत्रमा अवतरा, ग्यारहवां सूत्र और छाया। ૨૦૧ २२ संयमसे व्युत लोगोंडी सर्वत्र निन्दा होती है।
૨૦૧ २७ मारहवें सूत्रमा अवतरा, मारहवां सूत्र और छाया। ૨૦૨ २४ ठितनेछ सभागे साधु, उध्रविहारियोंढे साथ रहते हुमे भी
शीतलविहारी होते हैं, विनयशील साधुओंछे साथ रहते हमे भी अविनयी होते हैं, विरतोंठे साथ रहते हुमे भी अविरत होते हैं, संयभाराधोंछे साथ रहते हुमे भी ससंयभी होते हैं। अतः संयभी साधुओंष्ठी संगति प्राप्त र सर्वहा संयभाराधनमें तत्पर रहना याहिये।
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॥छति यतुर्थ देश सम्पूर्ण ॥४॥
॥अथ प्रश्नभ
श ॥
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१ यतुर्थ शझे साथ प्रश्वभ शिछा सम्मन्ध-न्थन । प्रथम
सूत्रछा अवतराम, प्रथम सूत्र और छाया ।। २ उन भुनियोंछो भने स्थानोंमें अनेछ प्रठारठे उपसर्ग प्राप्त
होते हैं, उन उपसर्गो छो वे भुनि अरछी तरह सहें। 3 द्वितीय सूत्रछा सवतरा, द्वितीय सूत्र और छाया। ४ नागभ ज्ञाता भुनि, तस्व३पठो तथा पूर्वाहि घिविभागोंठो ली अरछी तरह भान हर घ्याधर्भही प्रवाशा
हरे और धर्भानुष्ठाना इस हे। ५ तृतीय सूत्रछा सवतरारा, तृतीय सूत्र और छाया ।
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શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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