Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनु. विषय
पाना नं.
१८०
१८ वह मुनि, निस्पृही अहिंसह सर्वलोप्रिय साधुभर्याहामें
व्यवस्थित और परिऽत होता है। १८ शभ सूत्रछा अवतरा, शभ सूत्र और छाया। २० मायार्थ महाराष्ट्रको याहिये जिसे पक्षी अपने जथ्योंडो
Gउना सिजाते हैं उसी प्रहार वे भी धर्मानुष्ठानमें अनुत्साही शिष्योंछो हिन-रात उभशः सेाहश संगोष्ठी शिक्षा हैं। मायार्यद्वारा शिक्षित वे शिष्य, सहस परिषहों में सहन और संसारसागरते पार हरने में समर्थ हो जाते हैं।
१८१
॥छति तृतीय देश ॥
॥अथ यतुर्थ देश ॥
૧૯૨
१ तृतीय शठे साथ यतुर्थ शठा संबंधथन, प्रथम सूचछा
सवता , प्रथम सूत्र और छाया । २ आयार्थद्वारा परिश्रमपूर्व शिक्षित न्येि गये उन शिष्यो में
से छितने अहंकारयुत हो र उपशभछो छोऽ गु३४नोंडे साथ भी उठोर व्यवहार रते हैं।
૧૯૨ 3 द्वितीय सूत्रमा अवतरा, द्वितीय सूत्र और छाया। १८3 ४ हितने शिष्य ब्रह्मयर्थ में रह र ली, लगवान्छी आज्ञा ही
आराधनामें सर्वथा तत्पर नहीं हो र शितः भगवान् श्री आज्ञाठी अवहेलना रते हुसे सातागौरवठी अधिकृतासे माशिष्ठ हो पाते हैं।
૧૯૩ प तृतीय सूचठा भवता , तृतीय सूत्र और छाया।
૧૯૩ ६ हितने शिष्य, आयार्थद्वारा हुशीलायारले विधाका प्रतिघाहन उरने पर, उन आयाडे पर ही छुद्ध हो जाते
૧૯૩ ७ यतुर्थ सूत्रमा अवतरा, यतुर्थ सूत्र और छाया ।
૧૯૪
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩