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आचारांगभाष्यम्
९६. व्रत-च्युत मुनियों की अवहेलना ९७. मुनियों की प्रशंसा के चार हेतु
० गौरवत्रिक के कारण अप्रशंसा के चार हेतु ९८. प्रव्रज्या में विहरण करने की अर्हता के चार
बिन्दु
९-१६. विवेक
९. तत्त्वचर्या के प्रसंग में हेतुवाद का निर्देश १०. आत्मसामर्थ्य को तोल कर वाद करने का
परामर्श
• 'गुप्ति' पद की व्यावहारिक दृष्टि से व्याख्या ११-१३. सभी वादियों में हिंसा सम्मत
० हिंसाजनक वाद का परिहार और स्वधर्म में
प्रतिष्ठापन १४. धर्म गांव में या अरण्य में इस प्रश्न का
समाधान १५. प्रव्रज्या-ग्रहण के लिए तीनों यामों की
प्रासंगिकता १६. अनिदान कौन ? १७-२०. अहिंसा १७-१८. कर्म-समारंभ के विषय में भगवान् का निर्देश
० अहिंसा के लिए समर्पित व्यक्ति ही कर्म-समारंभ
९९. तितिक्षा धुत
• तितिक्षा परम धर्म
• अनुलोम और प्रतिलोम उपसर्गों को सहना १००-१०५. धर्मोपदेश धुत
१००. धर्मोपदेशक की अर्हता १०१. धर्मोपदेश अहिंसा के विकास के लिए १०२. किन व्यक्तियों को किस प्रकार का धर्मोपदेश
धर्म का स्वरूप-कथन १०३. धर्मोपदेश में विवेक १०४. 'विवेकपूर्वक धर्म-कथन' की विस्तार से व्याख्या
१०५. धर्मोपदेष्टा किसी की आशातना न करे १०६-११३. कषाय-परित्याग धुत
१०६. धर्मकथा-मर्मज्ञ का परिव्रजन कैसे? १०७. शांति की प्राप्ति के दो साधन १०८. संग को देखो १०९. इच्छाकाम और मदनकाम की वृद्धि के निमित्त ११०. स्वजन आदि का बधन अशांति का हेतु १११. कषायों का अनुबंध आरंभ से
० क्रोध आदि का कर्ता और विकर्ता कौन ? ११२. त्रोटक कौन?
• मृत्यु के क्षण में शांतचित्त रहने का निर्देश ११३. पारगामी और फलकावतष्टी मुनि के लक्षण
न जीने की आशंसा और न मरने की आशंसा आठवां अध्ययन १.२. असमनुज्ञ का विमोक्ष
१. असमनुज्ञ तथा समनुज्ञ की पारस्परिकता २. असमनुज्ञ भिक्षु का निमंत्रण • दर्शन की विशुद्धि के लिए असमनुज्ञ के साथ
आदान-प्रदान का निषेध ३८. असम्यग् आचार ३-४. असमनुज्ञ के साथ आदान-प्रदान के निषेध का
कारण ५. विविध एकांगी वादों का निरूपण ६. 'मेरे धर्म में सिद्धि' का निरूपण ७. एकांगीवाद अहेतुक ८. एकांगीवादियों का धर्म न सुआख्यात और न
सुनिरूपित
१९. भिक्षु होकर भी हिंसा में रत
२०. अभय साधक ही दंड-समारंभ से विरत २१-२९. अनाचरणीय का विमोक्ष २१-२४. अनाचरणीय का सेवन न करने का निर्देश २५. कृत आहार आदि स्वीकार न करने पर कर्मकरों
द्वारा प्रदत्त कष्ट २६-२७. कष्ट की स्थिति में मुनि का कर्तव्य २८. असमनुज्ञ मुनि के साथ आदर के व्यवहार का
निर्देश
२९. समनुज्ञ मुनि के साथ कैसा व्यवहार ? ३०-३१. प्रव्रज्या
मध्यम वय में प्रव्रज्या-ग्रहण का विशेष निर्देश ३२-३४. अपरिग्रह
३२. अपरिग्रह के मर्मवेत्ता ३३. अहिंसा और अपरिग्रह ही व्याप्ति
३४. अपरिग्रह की आराधना का हेतु ३५-४०. मुनि के आहार का प्रयोजन
३५. संयम-शरीर को धारण करने के लिए आहार ३६. आहार के बिना इन्द्रियशक्ति की क्षीणता
० आहार-प्रायोग्य पुद्गलों का आकर्षण ३७. दया का पालन करने के लिए आहार
३८. सन्निधान शस्त्र का ज्ञाता और दया ३९-४०. नियमित जीवन जीने वाले भिक्षु की विशेषताएं 1१-४२. अग्नि-सेवन का प्रतिषेध
शीतस्पर्श से बचने के लिए मुनि अग्निकाय का कदापि सेवन न करे
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