________________
आचारांगभाष्यम
१२२. जन्म-मरण के वृत्तमार्ग का अतिक्रमण १२३-१४०. परम आत्मा
• कर्मोपाधि निरपेक्ष आत्मा के स्वरूप का दिग्दर्शन
और व्याख्या!
८९-९२. आचार्य
• आचार्य की सरोवर से तुलना, साधना और गुणों का
वर्णन ९३-९५ श्रद्धा
९३. शंकाशील को आत्म-समाधि नहीं ९४. दो प्रकार के शिष्य और उनकी मनोवृत्ति
९५. सत्य और निःशंक है वीतराग का वचन ९६-९८ माध्यस्थ्य ९६. सम्यग असम्यग् का विवेक निश्चयनय और व्यवहार
नय के परिप्रेक्ष्य में ९७. सत्य की उपलब्धि मध्यस्थभाव से
९८. संधि का आचरण कैसे ? ९९-१०३. अहिंसा
९९. गुरुकुल-निवास के लाभ १००. "हिंसा निर्दोष है'—यह बाल-कथन है १०१-१०३. अहिंसा का स्वरूप-कथन ।
आत्मा का अद्वैत । कृत-कर्म का अनुसंवेदन १०४-१०६. आत्मा १०४. ज्ञाता और ज्ञान-दोनों आत्मा
० ज्ञान आत्मा में ही। चूर्णिकार का वाच्य । १०५. आत्मा और ज्ञान का अभेद
० आत्मा ध्रुव, ज्ञान के परिणाम उत्पन्न-व्यय-युक्त १०६. आत्मवादी सम्यग्यर्याय–सत्य का पारगामी १०७-११५. पथ-दर्शन
१०७. आज्ञा में अनुद्यमी और अनाज्ञा में उद्यमी
१०८. कुमार्ग का निषेध १०९-११०. महावीर का दर्शन और साधक का कर्तव्य १११. परीषहों और उपसर्गों से अपराजित ही निरालम्बी
होने में समर्थ ११२. मोक्षलक्षी बहिर्लेश्य न हो ११३. प्रवाद से प्रवाद को जानने का निर्देश ११४. प्रवाद की परीक्षा के तीन साधन
११५. अर्हत् के निर्देश का पालन ११६-१२२. सत्य का अनुशीलन
११६. अर्हत् सिद्धांत के निरीक्षण के तीन साधन ११७. आत्म-रमण की परिज्ञा और आगम के अनुसार
पराक्रम करने का निर्देश ११८. स्रोत के प्रकार ११९. आवर्त से विरमण १२०. स्रोत का साक्षात्कार १२१. इन्द्रिय-विषय राग और द्वेष के हेतु कब ?
० स्रोत जन्म-मरण के कारण
छठा अध्ययन १-४. ज्ञान का आख्यान
१-२. आख्याता का स्वरूप ३. मुक्ति-मार्ग को सुनने वालों की चार अर्हताएं
४. मुक्ति-मार्ग को सुनकर पराक्रम करने वाले ५-७. अनात्मप्रज्ञ का अवसाद
५. अनात्मप्रज्ञ का मनस्ताप ६. कूर्म का दृष्टांत
० साधुत्व की प्राप्ति की दुर्लभता
७. अनात्मज्ञ गृहवास से मुक्त नहीं होते ८-२३. अचिकित्सा धुत
८. विभिन्न रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का निर्देश
० सोलह रोगों का कथन ९. अंध कौन ? . १०-११. अनात्मप्रज्ञ व्यक्तियों का बार-बार कष्टों का
___ अनुभव १२. विभिन्न प्रकार के प्राणी १३. चिकित्सा के लिए प्राणी-वध १४. प्राणीवध महाभय का कारण १५. दुःख से भय १६. कामना-आसक्ति से जन्म-मरण और रोग की वेदना १७. कामासक्त-शरीर की निर्बलता और व्यथा
१८. आर्त अत्यन्त दुःखी और धृष्ट १९-२०. प्राणी-परितापकारक चिकित्सा की विधियां रोग
के उन्मूलन में असमर्थ ० जीवहिंसाकारक चिकित्सा से कर्मोपशमन नहीं,
कर्मों का उपचय २१. हिंसक चिकित्सा का निषेध २२. हिंसामूलक चिकित्सा महाभय की उत्पादक
२३. हिंसामूलक चिकित्सा का निषेध २४-२९. स्वजन-परित्याग धुत
२४. धुतवाद का प्रतिज्ञा-सूत्र
२५. जन्मकाल की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन २६-२८. अभिनिष्क्रमण के समय होने वाली अवस्थाओं का
वर्णन २९. आत्मानुसंधान का ज्ञान ३०-३९. काम्य-परित्याग धुत
३०. वसु-वीतरागसंयम और अनुवसु-सरागसंयम की
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org