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मूल सूत्र तथा भाष्यगत विषय विवरण
चर्चा तथा कुशील मुनि की संयम पालना में असमर्थता
३१. अर्हत शासन को छोड़ गृहस्थ या अन्यलिंगी ३२. परीषह-सहन का क्रमशः अभ्यास और उसकी प्रक्रिया
३३. काम से संयमत होने वाले को मृत्यु का अपाय दर्शन
३४. काम का स्वरूप और उसको तैरने का उपाय ३५. अप्रमाद - सूत्र
• प्रणिधान के चार विकल्प
३६. वस्त्र आदि के प्रति अनासक्त मुनि की दृढता २७. महामुनि कौन ?
३८-३९. संग परित्याग के लिए एकत्वानुप्रेक्षा का विधान एकत्वानुप्रेक्षा: कर्म-प्रकंपन की प्रक्रिया
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४०-५१. अचेल धुत
४०. अचेलचर्या का स्वरूप
४१. अचेल मुनि की परीषह - तितिक्षा
४२-४३. अन मुनि की स्पर्शात्मक परीषद्वतिक्षा
और उसका आलम्बन - सूत्र
४४. एकजातीय और अन्यजातीय परीषह-सहन का निर्देश
४५. अचेल मुनि और लज्जा परीषद् • पांच प्रकार के पुरुष
४६. विस्रोतसिका के परिहार का निर्देश ४७. धर्मक्षेत्र में वस्तुतः नग्न कौन ? ० नग्न साधना का प्रयोजन
४८. मुनि जीवन की साधना यावज्जीवन ४९. उत्तरवाद है अचेलधर्म की साधना ५०-५१ उत्तरवाद की अनुपालना करने वाला कौन ? ५२-५८. एकलचर्या
५२. गणचर्या और एकचर्या के योग्य कौन ?
५३. गच्छनित और गच्छन्तर्गत मुनि की एपणा-विधिः ५४. एकचर्या वाला मुनि अप्रतिबद्ध विहारी २५-५०. स्मशान प्रतिमा और परीष
'सुम' और 'दुमि' की मीमांसा ५९-६६. उपकरण - परित्याग धुत
५९. विधूतकल्प की व्याख्या ६०. अचेल अवस्था के गुण ६१-६२. अचेल मुनि के परीषह
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६३. ० अचेल मुनि को लाघव की उपलब्धि
• उपकरणलाघव और भावलाघव की परस्परता ६४. अल मुनि के तप
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६५. ० अचेल मुनि सचेल को हीन न समझे • अचेलत्व के लाभ
६६. अचेलत्व अशक्य अनुष्ठान नहीं
६७-६९. शरीर लाघव धुत
६७. प्रज्ञानवान् मूर्ति के शरीर लाव ६८. श्रेणी को विश्रेणी
६९. तीर्ण, मुक्त और विरत
७०-७३. संयम धुत
७०-७१. अरति पर विजय पाने का उपाय ७२. संयमरति असंदीनद्वीपतुल्य
७३. संयम धुत की साधना का फलित ७४-७५. विनय धुत
• विनययान् शिष्य ही एकाकिप्रतिमा और अपेलत्व के योग्य
• विहगपोत का दृष्टान्त
७६-९८. गौरव-परित्याग धुत
७६-७७ दिन और रात में दी जाने वाली वाचना के विषय में भूमिगत प्राचीन परंपरा का उल्लेख तथा ज्ञान-मद के परिहार का निर्देश
७८. अहं तथा रस-गौरव और सात गौरव से आने बाली उडता
७९. प्रव्रजित मुनि की औदयिक भाव में होने वाली मनःस्थिति
० शास्ता के प्रति परुष वचन बोलने के चार हेतु
८०. शीलवान् को अशील कहने का अहं
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८१. दोहरी मूर्खता
८२. सन्मार्ग से च्युत मुनि द्वारा दूसरों में शंका उत्पन्न
करना
८३. गौरवत्रयी से संयम - विमुखता
८४. मुनित्व से पुनः गृहस्थ
८५. निष्क्रमण दुर्निष्क्रमण
८६. संयमच्युतमुनि साधारण लोगों से भी निदनीय ८७. अहं का हेतु - अल्पज्ञता या बहुज्ञता ? या दोनों ?
८८-९०. गौरवत्रयी वाले मुनि का व्यवहार
९१. गौरवत्रयी से पराभूत शिष्य को आचार्य का
अनुशासन
९२. गौरवत्रयी से आस्रव में निमज्जन
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९३. वीरवृत्ति से प्रव्रज्या लेने वाले का चिन्तन
९४. सहवृत से अभिनिष्क्रमण और शृगालवृत्ति से
आचरण का निमित्त गौरवत्रयी
९५. व्रतों के लूषक कौन ?
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