Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
View full book text
________________
• यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व
पुट होता था । उदाहरणार्थ यदि वे किसी ऐसे ग्राम में पहुँच गये, जहाँ माँस-मदिरा सेवन करने वालों की संख्या अधिक है तो वे अपने अनुयायियों के मध्य प्रवचन में व्यसन के दोषों पर अपना प्रवचन फरमाते । गाँवों में और नगरों में भी प्रवचन के समय सभी जाति और धर्म के लोग प्रवचन- पीयूष का पान करने आते थे, आपके ऐसे प्रवचनों का अचूक प्रभाव होता और लोग खड़े होकर माँस मदिरा का आजीवन त्याग करने का नियम ग्रहण कर लेते। इसके विपरीत यदि वे उन लोगों को सीधे-सीधे माँस मदिरा का त्याग करने के लिए कहते तो शायद वे लोग त्याग नहीं करते।
OPE
इसी प्रकार एक बार आप विहार करते हुए भोरोल पधारे। यहाँ देवी के मंदिर में पशुबलि दी जाती थी। जब आप को इस तथ्य से अवगत कराया गया तो आप के पशुपलि को रूकवाने के लिए यहाँ के ठाकुर जाधव को प्रतिबोध दिया। परिणाम यह हुआ कि ठाकुर साहब ने पशुबलि रोकने के आदेश दे दिये । इस प्रकार हिंसा पर अहिंसा की विजय हुई। आपके प्रवचनों के प्रभाव से समाज में पड़ी अनेक स्थानों की फूट समाप्त हुई। आपसी फूट के कारण समाज के कई कार्य रूके पड़े हुए थे। यह आपकी प्रवचन - पटुता ही कही जायेगी। आप व्यक्तिगत रूप से समझाने के स्थान पर सार्वजनिक रूप से अपनी बात कहकर श्रद्धालुओं को प्रभावित करते थे।
हमारा उद्देश्य यहाँ आचार्य भगवनके प्रवचन साहित्य पर विचार करना न होकर उनके कुशल प्रवचनकार होने पर विचार करना है, इसलिए हम उनके प्रवचन के विषय आदि पर चर्चा नहीं कर रहे हैं, प्रवचन साहित्य की समीक्षा वाला अलग विषय हो सकता है। हाँ, अब थोड़ा सा विचार उनके प्रवचन की भाषा पर भी करना चाहेंगे। कारण कि एक कुशल प्रवचनकार की भाषा का प्रभाव भी उसके श्रोताओं को बाँधे रखने का काम करता है।
आचार्यश्री के प्रवचन की भाषा सरल एवं सहज समझ में आनेवाली है। भाषा में सामान्य हिन्दी के साथ कहीं-कहीं स्थानीय बोली के शब्दों का भी अनायास प्रयोग हुआ है। ऐसे प्रयोग से भाषा सौंदर्य में निखार आया है और प्रवचन सरस एवं प्रवाहमय बन गया है। कहीं-कहीं उर्दू शब्दों का भी प्रयोग हुआ है जो स्वाभाविक लगता है। प्रवचनों में लोक कहावतों, मुहावरों का भी प्रयोग स्वाभाविक रूप से हुआ है, कुछ उदाहरण प्रस्तुत
हैं -
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
सबसे भली चुप |
क्रोधक्रोड पूरबतणो तप जावे नाश ।
दो घड़ी की वाह-वाह का कारण बनना।
चंगुल से बचाव करना ।
थोथा चना बाजे घना।
कीड़ी संचे तीतर खाय, पापी का धन पल्ले जाय।
पड्या लक्षण न मिटे मुआ
अन्न बिना सब बात खोटी ।
6
Jain Education International
[१९
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org