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श्री उपदेश माला
रणसिंह का चरित्र कर्म के उदय से संसार में गति होती है और शरीर की निवृत्ति परमात्म पद का कारण है, विषयों के निमित्त ऐसे सुख दुःख में इन्द्रिय विषय ही कारण है।
इस प्रकार कमलवती के कहने पर रत्नवती को कुमार ने सम्मानित की कुछ दिन स्थिरता कर पुरुषोत्तम राजा की आज्ञा लेकर कनकपुर प्रति चला। रत्नवती के पिता ने अनेक दास-दासी सहित वस्त्राभूषण से अलंकृत कर स्वपुत्री को भेजी। कुमार को भी अनेक हाथी घोड़े पदाति सैन्य मुक्ताफलादि स्वर्णाभूषण आदि दिये। रणसिंह भी रत्नवती को लेकर कमलवती के साथ शुभ दिन में चला। पाड़लीपुर समीप में आया। वहाँ अपनी पुत्री का सर्व स्वरूप जानकर कमलसेन राजा ने सम्मुख आकर महोत्सव पूर्वक जामाता का नगर प्रवेश करवाया। कमलवती का अधिक सम्मान किया, और नगर लोको ने उसकी प्रशंसा की। माता ने सस्नेह आलंगिन किया। कुछ दिन रूककर, कुमार ने कनकपुर की ओर प्रयाण किया। यह सुनकर कनकशेखर राजा आनंद सहित संमुख गया और कुमार का नगर प्रवेश कराया। कमलवती को देखकर नगर की स्त्रियाँ परस्पर इस प्रकार कहने लगीयह कमलवती शील के प्रभाव से यम के पास जाकर पुनः लौट आयी है। रणसिंहकुमार इसके गुणों से प्रभावित होकर मरने के लिए उद्यत बना था। सतीशिरोमणि इस कमलवती को धन्य है, इस प्रकार प्रशंसा करने लगी।
एकबार कुमार ने विजयपुर नगर समीप स्थित श्री पार्श्वप्रभु मंदिर में अष्टाह्मिका महोत्सव किया। तब चिंतामणियक्ष ने प्रत्यक्ष होकर कहा-वत्स! अपने पितृ-राज्य को ग्रहण करो। यक्ष वचन प्रमाणित कर कुमार ने विजयपुर पर आक्रमण किया अल्प सैन्य होने से, राजा नगर बाहर नहीं आया। तब यक्ष ने आकाश मार्ग से कुमार की सेना को नगर में प्रवेश करते दिखायी। यह देखकर राजा नगर छोड़कर चला गया। प्रधानपुरुषों ने कुमार को विजयसेन पट्ट पर स्थापित किया। वह रणसिंह राजा हुआ और नीतिपूर्वक राज्य का संचालन करने लगा।
एकदिन अर्जुन नामक किसान नगर में प्रवेश कर रहा था। मार्ग के श्रम से उसे भूख और प्यास सताने लगी। उसने तरबुज का खेत देखा। वहाँ दुगुणा मूल्य रखकर उसने एक तरबुज उठाया और कपड़े में लपेटकर नगर में प्रवेश करने लगा। इस अवसर पर किसीने श्रेष्ठी पुत्र की हत्या कर, उसका मस्तक ग्रहण कर चला गया। उस पुरुष को पकड़ने के लिए सैनिक इधर-उधर ढुंढ रहे थे। अर्जुन को देखकर पूछा-यह तेरे कमर में क्या है? उसने कहा-तरबुज है। कपड़े को खोला तो उनको मस्तक दिखायी दिया। सैनिक उसे बांधकर प्रधान पुरुष के पास ले गएँ। प्रधान ने पूछा-यह तूंने क्या किया? अर्जुन ने कहा-मैं इस विषय में कुछ भी नही जानता हूँ| 'घडइघडि'त्ति इस प्रकार उत्तर दिया। राजा के पास लाया गया। राजा ने पूछा--तुंने यह कार्य क्यों किया?
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