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श्री उपदेश माला गाथा २४८
श्रावक के गुण और लक्षण छुटकारा नहीं। तीर्थंकर जैसों के भी निकाचित भोगावली कर्म भोगे बिना सर्वकर्मों का क्षय नहीं हुआ तो तुम कौन सी बिसात में हो?" शासनदेव के ये वचन सुनकर नंदीषेण मुनि अकेले विहार करके एक दिन छट्ठ (बेले) तप के पारणे के लिए आहारार्थ राजगृही नगरी के उच्च-नीच-मध्यम कुलों में घूमते हुए अनायास ही अनजाने में वेश्या के यहाँ पहुँच गये। ज्यों ही उन्होंने द्वार पर 'धर्मलाभ' शब्द का उच्चारण किया; त्यों ही अंदर से वेश्या की आवाज आयी-"यहाँ धर्मलाभ से क्या काम है? यहाँ तो अर्थलाभ की जरूरत है! तुम तो दीन और निर्धन हो, अर्थलाभ कैसे दे सकोगे?' वेश्या के वचन मुनि के मन में तीर की तरह चुभ गये। उनका स्वाभिमान जागा और तुरंत ही उन्होंने घास का एक तिनका खींचा और अपनी तपोलब्धि के प्रभाव से साढ़े बारह करोड़ सोनैयों की वर्षा करा दी। फिर मानिनी वेश्या को ललकार कर कहा- "अगर तुम्हें धर्मलाभ की जरूरत नहीं है तो इन धन के ढेर को उठा लो।" यों कहते हुए मुनि ज्यों ही वेश्यागृह से बाहर निकलने लगते हैं, त्यों ही वेश्या ने दौड़कर उनकी चादर का पल्ला पकड़ लिया
और उनके सामने अपनी बाहें फैलाकर कहा-"प्राणनाथ! यह मुफ्त का धन मेरे किस काम का? हम वारांगनाएं हैं। विषयसुख के द्वारा पुरुषों का मनोरंजन करने के पश्चात् ही हम अपने परिश्रम के बदले में धन लेती है। आप या तो इस धन को अपने साथ ले जाइये, या फिर मेरे यहीं आनंद से रहकर इस धन के बदले में मेरे साथ विषयसुख का उपभोग करें। आपका यह सुकोमल सुंदर शरीर; यह मदमाती जवानी क्या यों ही तप की भट्टी में झौंक देने या अन्य कष्ट सहन करके सूखा देने के लिए है? इसीलिए आइए, अनायास ही मिले हुए इस धन, यौवन, मेरे सुंदर तन और घर का मनचाहा उपभोग कीजिए।" वेश्या की कोमल अभ्यर्थना सुनकर भोगावली कर्म के उदय के कारण नंदीषेण मुनि का मन पिघल गया। उन्होंने अपना रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि साधुवेष के उपकरण वहीं एक खूटी पर टांग दिये और वेश्या के यहाँ ही रहने लगे। परंतु वेश्या के साथ विषयसुखों का उपभोग करते हुए भी वे इतने जागरूक थे कि उन्होंने साधुवेष उतारा तभी से ऐसा अभिग्रह (संकल्प) कर लिया कि "मैं रोजाना जब तक दस व्यक्तियों को धर्म का प्रतिबोध नहीं दे दूंगा, तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।" इस तरह प्रतिदिन नंदीषेण का प्रतिबोध का क्रम चलता रहा। जो भी उससे प्रतिबोध पाता, वह भगवान् महावीर स्वामी के पास जाकर दीक्षा ले लेता। यों वेश्या के यहाँ रहते हुए नंदीषेण को १२ वर्ष बीत गये। ___ एक दिन ऐसा हुआ कि नंदीषेण ने ९ व्यक्तियों को तो प्रतिबोधित कर
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