Book Title: Updeshmala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 409
________________ दर्दुरांक देव की कथा श्री उपदेश माला गाथा ४३६ के लिए न मरने और न जीने की अटपटी-सी बात कही; उसका रहस्य क्या है? भगवन्।" भगवान् ने उत्तर दिया- "राजन्! सुनो, इसका रहस्य! मैं यहाँ हूँ, वहाँ तक मेरे वेदनीयादि ४ कर्म लगे रहेंगे, और मर जाने के बाद तो मुझे मुक्ति सुख मिलेगा; इसीलिए मेरे लिये हितकर जल्दी मरने की बात कही। और तुम्हें जो चिरकाल तक जीने को कहा, उसके पीछे यह कारण है कि तुम्हें मरने के बाद अपने अशुभ कर्मों को भोगने के लिए नरक में जाना पड़ेगा। इसीलिए तुम इस लोक में जितना जीओगे, उतने समय तक राज्यसुखों का उपभोग करोगे। और अभयकुमार के लिए कहा था कि "चाहे जीए, चाहे मरे" उसके पीछे रहस्य यह है कि वह यहाँ भी धर्मकार्य करता हुआ राज्यसुख का उपभोग कर रहा है और परलोक में भी वह अनुत्तरविमानवासी देव बनेगा, इसीलिए उसके लिए यहाँ भी सुख है, आगे भी सुख है। इसी कारण देव ने ऐसा कहा। और कालसौकारिक जीता रहा तो भी वह हिंसादि पापकर्म करेगा और मरा तो भी आगे सप्तम नरक में जाकर महादुःख उठायेगा। इसीलिए उसके लिये कहा था-'न मरो, न जीओ।' संसार में जीतने भी प्राणी हैं, उन पर इन चारों में से एक न एक कथन अवश्य लागू होता है। दर्दुरांक देव का अभिप्राय जानकर राजा श्रेणिक ने सविनय अपने लिये पूछा-"आप जैसे मेरे शिरच्छत्र होते हुए भी मुझे नरक में जाना पड़े, क्या यह उचित है, भगवन्?" भगवान् ने कहा-"राजन्! तुमने सम्यक्त्व प्राप्ति से पहले नरकायुष्यकर्म बांध लिया है, इसीलिए उसे टाला नहीं जा सकता। परंतु तुम चिन्ता न करो। अशुभ कर्म काटने के लिए नरक भी तुम्हारे लिये अच्छा निमित्त है। इसी कारण आगामी चौबीसी (२४ तीर्थंकरों) में से तुम पद्मनाभ नाम के प्रथम तीर्थंकर बनोगे।" श्रेणिक राजा सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने फिर पूछा- "भगवन्! क्या कोई ऐसा उपाय भी है, जिससे मुझे नरक में न जाना पड़े?" भगवान् ने उसे बताया- "राजन्! एक उपाय तो यह है कि अगर तुम्हारी कपिला दासी शुद्धभाव से अपने हाथ से साधु को दान दे दे; दूसरा उपाय है-तुम्हारी नगरी का कालसौकरिक कसाई, जो प्रतिदिन ५०० भैंसे मारता है; अगर कतई पशुवध बंद कर दे। ऐसा हो जाय तो तुम्हें नरक में नहीं जाना पड़ेगा।'' राजा श्रेणिक आशा की नदी में डुबकी लगाता हुआ राजमहल की ओर जा रहा था कि अकस्मात् उसके सम्यक्त्व की परीक्षा के लिए कंधे पर मछलियों से भरा जाल लिये जैनसाधु का वेष बनाकर दर्दुरांक देव सामने से चला आ रहा था। श्रेणिक ने उसका रंगढंग देखकर पूछा-"अरे मुनि वेषधारी! यह मछली पकड़ने का जाल क्यों लिये 382

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