Book Title: Updeshmala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 444
________________ साधु को नित्य एकासन तप करने से संतोष, लोलुपता का अभाव, रसना विजय, संयमवृद्धि आदि विशिष्ट गुणों की प्राप्ति का मुख्य ध्येय होने से उपवासादि तप से भी विशेष निर्जरा है। श्रुतज्ञान की प्राप्ति भी वीर्यरक्षा के आधीन है। विर्यरक्षा से शरीरबल, उसमें से मनोबल, उसमें से बुद्धि और बुद्धि से आत्मबल प्रकट होता है। सत्यवचन सह शुद्धाचरण से देव भी दास बनतें है, जो जिस पदार्थ से पराधीन बना हो उसे उस पदार्थ की अप्राप्ति में अदत्त लेने का प्रसंग आ जाता है। -जयानंद Mesco Prints: 080-22380470

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