Book Title: Updeshmala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 413
________________ सुलस की कथा श्री उपदेश माला गाथा ४४५ अवि इच्छंति य मरणं, न य परपीडं करंति मणसा वि । जे सुविहियसुगइपहा, सोयरियसुओ जहा सुलसो ॥४४५॥ शब्दार्थ - कालसौकरिक कसाई के पुत्र सुलस के समान जिन्होंने सुगति का मार्ग (मोक्षमार्ग) भलीभांति जान लिया है, वे दूसरे प्राणियों के कष्टों-संकटों के निवारण के लिए खुद मर जाना पसंद करते हैं, किन्तु मन से भी किसी दूसरे प्राणी को पीड़ा देना नहीं चाहते; शरीर और वचन से तो पीड़ा देने की बात ही दूर रही। सुलस ने जब से तत्त्वज्ञान और सुबोध पाया, तब से दूसरे जीव को तकलीफ नहीं पहुँचायी; वैसे ही तत्त्वज्ञ और मोक्षमार्ग वेत्ता पुरुष दूसरों को तकलीफ नहीं देते।।४४५।। प्रसंगवश यहाँ सुलस की कथा दी जा रही है। सुलस की कथा राजगृही नगरी में महाक्रूरकर्मा और अधार्मिक कालसौकरिक नामका पशुओं की कत्ल करने वाला कसाई रहता था। वह हमेशा ५०० भैसों को मारता था और इसी पापमयी आजीविका से अपने कुटुंब का भरणपोषण करता था। उसके सुलस नाम का एक पुत्र था। उसने मंत्री अभयकुमार की संगति में धर्म का स्वरूप समझकर श्रावकव्रत अंगीकार कर लिये। इसके कुछ अर्से बाद एक बार कालसौकरिक के शरीर में एक भयंकर बीमारी पैदा हुई, जिससे उसे अत्यंत वेदना होने लगी। उस असह्य वेदना के मारे वह रोता, चिल्लाता, छटपटाता और हाय तोबा. मचाता था। उसके सगे संबंधियों ने बहुतेरे इलाज करवाये, लेकिन वेदना शांत नहीं हुई। पिता की इस अपार पीड़ा को देखकर दुःखित हुए सुलस ने एक दिन अभयकुमार से बात की। अभयकुमार ने कहा-"भाई सुलस! सच कहूँ तो तुम्हारे पिता ने इस जिंदगी में अनेक बड़े-बड़े पापकर्म किये हैं, जिसके फल स्वरूप इसे नरक में जाना पड़ेगा; इसीलिए बढ़िया से बढ़िया दवा देने पर भी इसे आराम होना कठिन है। अतः मेरी राय में, इसके उपचार के लिए हलके किस्म की औषधियाँ दो, जिससे इसे कुछ शांति मिले।" अभयकुमार के सूझबूझ भरे परामर्श से सुलस ने घर आकर अपने पिता के शरीर पर विष्टा आदि बदबूदार वस्तुओं का लेप किया। तत्पश्चात् उसे बबूल और बेर की कंटीली शय्या पर सुलाया। कड़वी, कसैली, तीखी, चरचरी दवाईयाँ पिलाने लगा और गाय-भैंस आदि का पेशाब भी पिलाने लगा। फिर सूअर आदि जानवरों की विष्टा का धुंआ भी दिया और राक्षस, वैताल आदि डरावना रूप भी दिखाया। इस प्रकार के उपचार से कालसौकरिक के 386 =

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