Book Title: Updeshmala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 405
________________ दर्दुरांक देव की कथा श्री उपदेश माला गाथा ४३६ कहा एक दिन चंपानगरी के राजा दधिवाहन ने कौशांबीनगरी पर सहसा चढ़ाई कर दी ; नगरी को चारों ओर से घेर लिया। शतानीकराजा के पास सेना कम होने से वह किले के अंदर ही रहा। प्रतिदिन युद्ध करते- करते वर्षाकाल आ गया। उस समय दधिवाहन राजा की सेना तितरबितर हो गयी। सेडुक ब्राह्मण फल-फूल आदि तोड़कर लाने के लिए नगरी के बाहर वाटिका की ओर जा रहा था; रास्ते में उसने दधिवाहन की सेना बहुत थोड़ी देखकर सोचा - " मैं झटपट जाकर शतानीक नृप को यह खबर दूं।" अतः वह सीधे राजा शतानीक के पास पहुँचा और उनसे निवेदन किया—''राजन्! आज इस समय आप दधिवाहन के साथ युद्ध करेंगे तो निश्चित्त ही आपकी विजय होगी। " अतः शतानीक राजा सेना लेकर किले के बाहर आया, दधिवाहन राजा से लड़ा। दधिवाहन की सेना भाग खड़ी हुई । शतानीक ने अपनी विजय का डंका बजा दिया। और दधिवाहन के बचे खूचे हाथी-घोड़े आदि लेकर नगरी के अंदर आया। राजा शतानीक ने सेडुक विप्र को बुलाया और उससे - "सेडुक ! मैं तुम्हारे कार्य से बहुत खुश हुआ हूँ। अतः तुम जो चाहो सो मांग लो।" सेडुक बोला - "स्वामिन्! मैं घर जाकर अपनी पत्नी से पूछकर बाद में आपसे यथेष्ट मागूंगा । " यों कहकर वह घर आया। अपनी पत्नी से उसने कहा‘“प्रिये! आज शतानीक राजा मुझ पर अत्यंत प्रसन्न हैं; वे मुझे यथेष्ट वरदान देना चाहते हैं; बोलो, तुम्हारी क्या सलाह है ? क्या मांगूं ? " मंदबुद्धि स्त्री ने सोचा"यदि यह कहीं बहुत वैभव या जागीरी मांग बैठा तो फिर मुझे किसी कीमत पर नहीं पूछेगा। मुझे शायद अपमानित करके घर से निकाल भी दे। इसीलिए इसे ऐसी सलाह दूं, जिससे यह मेरे साथ प्रेम पूर्वक रहे। अतः उसने कहा - "प्राणानाथ ! यदि आप पर राजा प्रसन्न हैं तो यही मांग लो कि प्रतिदिन हमें इच्छानुसार भोजन और ऊपर से एक स्वर्णमुद्रा दक्षिणा में मिले। क्योंकि नगर का अधिपति बनना तो व्यर्थ ही अपनी नींद हराम करके जागरण करने के समान है; इससे हमें कोई लाभ नहीं ! " पत्नी की बात सुनकर उस अभागे ने भी राजा से उसी प्रकार का वरदान मांगा। राजा ने भी अपने राज्य में क्रमशः प्रत्येक घर से रोजाना सेडुक विप्र को भोजन करवाकर ऊपर से एक स्वर्णमुद्रा दक्षिणा में दे देने की आज्ञा घोषित करवायी। राजाज्ञा के कारण लोग भी उसे एक के बाद एक निमंत्रण देने लगे। सेडुक भी दक्षिणा के लोभ से रोजाना एक घर से भोजन कर लेने के बाद उस भोजन को वमन करके निकाल देता, फिर दूसरे घर भोजन करने जाता। इस तरह अतृप्तिपूर्वक भोजन करते रहने से सेडुक को त्वचाविकार हो गया और धीरे-धीरे 1. हेयोपदेया टीका में दधिवाहन, शतानिक के युद्ध का वर्णन नहीं है। 378

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