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श्री उपदेश माला गाथा ४३६
दुर्दुरांक देव की कथा वह गलित कोढ़ में परिणत हो गया। उसके हाथ-पैर आदि अंगोपांग गलने लगे। परंतु धन और पुत्रादि परिवार बहुत बढ़ गया।
सेडुक को चेपी कोढ़रोग हो जाने से मंत्री आदि ने उससे कहा"सेडुक! अब तुम्हारा भोजन के लिए घर-घर में जाना ठीक नहीं। तुम अपने बदले अपने पुत्र को भेजा करना।" अतः उसके बाद उसका पुत्र रोजाना प्रत्येक घर में भोजन के लिए जाता और स्वर्णमुद्रा दक्षिणा के रूप में ले आता। सेडुक से अब सभी लोग नफरत करने लगे। उसके पुत्रों ने उसे रहने के लिए एक अलग कमरा दे दिया। वे वहीं लकड़ी के बर्तन में उसके लिये चुपचाप भोजन डाल जाते। कोई भी घर का आदमी आते-जाते उससे बोलता नहीं। यहाँ तक कि घरवाले सभी उसे ताना मारने लगे- "ऐसी जिंदगी से तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है। किसी को मुंह बताने लायक भी तो नहीं रहे।'' घर वालों के ये तिरस्कार पूर्ण वचन सुनकर सेडुक को उन पर बहुत गुस्सा आया। उसने मन ही मन सोचा- "इन दुष्टों को कोढ़िया बनाकर मेरे अपमान का बदला लूं।" उसे एक युक्ति सूझी। उसने सबेरे ही अपने पुत्र को पास बुलाकर कहा-"बेटा, मैं अब बूढ़ा हो चला हूँ। मौत भी नजदीक आ लगी है। इसीलिए मुझे तूं एक बार तीर्थयात्रा करा ला। परंतु हमारे कुल का ऐसा रिवाज (आचार) है कि तीर्थयात्रा के लिए जाने से पहले जौ और घास मंत्रित करके एक बकरे को खिलाए और जब वह हृष्टपुष्ट हो जाय तो उसे मारकर उसका मांस सारे कुटुंब को खिलाए। इसीलिए पुत्र! तुम मुझे एक बकरे का बच्चा ला दो।" पुत्र ने पिता की आज्ञानुसार बकरे का बच्चा ला दिया। बकरे के बच्चे को सेडुक ने अपने पास रख लिया और रोजाना कोढ़ के कारण शरीर से निकलने वाली मवाद जौ और घास में मिलाकर उसे खिलाने लगा। इस कारण कुछ समय बाद उस बकरे को भी कोढ़ हो गया। एक दिन सेडुक उसे मारकर उसका मांस अपने सारे कुटुंब को खिलाकर तीर्थयात्रा के लिए चल पड़ा।
रास्ते में सेडुक को बहुत जोर की प्यास लगी। अतः उसे एक सरोवर दिखायी दिया, जो सूर्य की प्रखर किरणोंसे तपा हुआ, वृक्षों के पत्तों से ढका हुआ, उकाले के समान था। सेडुक ने उस सरोवर का पानी पीया, जिससे उसकी तृष्णा शांत हो गयी, साथ ही उसका कुष्टरोग भी शांत होने लगा। अतः उसने वहाँ बहुत समय तक रहकर उस सरोवर का पानी पीया; जिससे सारी कुष्टकृमि की व्याधि झड़ गयी और वह पूर्ण स्वस्थ हो गया। परंतु इधर उसका सारा परिवार कुष्टरोगी बकरे का मांस खाने से कोढ़िया बन गया। उसके बाद सेडुक अपना शरीर हृष्टपुष्ट बनाने के लिए कौशांबी नगरी लौटा। लोगों ने उसे स्वस्थ देखकर उससे पूछा"तुम्हारा रोग कैसे मिटा?" उसने जवाब दिया- "देवता के प्रभाव से मेरा रोग नष्ट
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