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विद्यादाता चाण्डाल की कथा
श्री उपदेश माला गाथा २६६ उसने कहा- "मेरी राय में तो इन तीनों से बढ़कर दुष्कर कार्य करने वाले उन चोरों को कहना चाहिए; जिन्होंने वस्त्राभूषणों से सुसज्जित और पास में आयी हुयी उस स्त्री को लूटे वगैर छोड़ दी।" यह सुनकर मानव स्वभाव के पारखी अभयकुमार ने फौरन उस चाण्डल को गिरफ्तार कर लिया और एकांत में ले जाकर उससे पूछा—''सच-सच बता; क्या तूं ने ही राजाजी के बाग में से आम चुराया है? सच नहीं बतायेगा तो भयंकर सजा दूंगा।" चांडाल ने भयभीत होकर कहा“हाँ, मंत्रीवर! मैंने ही आम का फल चुराया है!” “भला, इतना सख्त पहरा होते हुए भी तूने कैसे और किसलिए आम चुराया ?" अभयकुमार ने पूछा। चांडाल ने अपनी गृहिणी को गर्भप्रभाव से इस बैमौसम में आम खाने का दोहद उत्पन्न होने और अन्य कोई चारा न देखकर अपनी दो विद्याओं के बल से राजोद्यान से आम प्राप्त करने का यथातथ्य निवेदन किया। अतः अभयकुमार ने उसे ले जाकर श्रेणिक राजा के सामने हाजिर किया। राजा ने उस चोर को मृत्युदण्ड देने का हुक्म सुनाया। इस पर दयालु अभयकुमार ने राजा से कहा - " पिताजी! इसे सजा देने से पहले इससे आप दो विद्याएं तो ग्रहण कर लें। उसके बाद जैसा उचित हो, वैसा करें। " इस पर राजा श्रेणिक सिंहासन पर बैठे-बैठे ही अपने सामने रस्सियों से हाथ बांधे हुए चांडाल से विद्याएं सीखने लगा। मगर राजा को इतनी मेहनत करने पर भी उसका एक अक्षर भी याद न हुआ। यह माजरा देखकर अभयकुमार बोला"राजन् ! विद्या इस तरह से कभी नहीं आयेगी । विद्या विनय से आती है। आप तो सिंहासन पर बैठे हैं और विद्यादाता को आपने हाथ जकड़े हुए नीचे खड़ा कर रखा है! अतः मेरी राय में विद्यागुरु को सिंहासन पर बिठाइये और आप स्वयं सामने हाथ जोड़कर बैठिये, तभी विद्या आयेगी । " राजा ने वैसा ही किया। इससे दोनों विद्याएँ शीघ्र ही हासिल कर ली। विद्याग्रहण के बाद राजा ने उसे मारने की सजा देने का हुक्म सुनाया। अब अभयकुमार से न रहा गया। उसने कहा"महाराजा! आपकी यह आज्ञा अनुचित है। क्योंकि नीतिशास्त्र में बताया है कि "एक अक्षर का भी ज्ञान देने वाले को जो गुरु रूप में नही मानता, वह मरकर सौ बार कुत्ते की योनि में और अंत में चाण्डालयोनि में जन्म लेता है।" इसीलिए अब जब यह चांडाल आपका विद्यागुरु हो गया, तब आप इसे कैसे मार सकते हैं?अब तो आपके लिए यह आदरणीय और पूज्य हो गया है!” राजा ने अभयकुमार की बात मानकर चांडाल को बंधनमुक्त करा कर उसकी सजा रद्द कर दी और अत्यंत भक्ति-स 5- सम्मान पूर्वक प्रचुर धन, वस्त्र आदि देकर ससत्कार उसे विदा किया। 332